गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

छोटी सी सलाह

रोज़ सुबह बच्चों की यूनिफार्म चेक होतीं और वह बच्चा लगभग रोज़ ही कभी गन्दी यूनिफार्म कभी बिना इस्त्री किये कपड़े कभी बिना पोलिश किये जूते के लिए खड़ा होता। किताब कॉपियाँ नहीं लाना ,होमवर्क न करना ये भी रोज़ का ही काम था।  हालाँकि वह पढ़ने में ठीक ठाक था पर अधिकतर खोया खोया ही रहता, शायद उसकी सुबह ही सजा से शुरू होती थी इसका असर था।  
स्टाफ रूम में अक्सर उस बच्चे की चर्चा होती थी लेकिन एक वितृष्णा के साथ , लगभग हर टीचर उसकी लापरवाही से परेशान थी। हाँ चर्चा इस बात की भी होती की वह शहर के करोड़पति का इकलौता बेटा था और उसकी माँ सुबह की फ्लाईट से बोम्बे जाती है शोपिंग करने और शाम की फ्लाईट से वापस लौट आती है।  घर और बच्चा नौकरों के हवाले रहते हैं। सुबह जब वह स्कूल आता है तब मम्मी पापा सो रहे होते हैं और शाम को जब घर लौटता है वे अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं। उसे कुछ कहो तो वह सिर नीचा करके चुपचाप सुन लेता था एक शब्द भी न कहता। 
करीब महीने भर मैं उसे देखती रही उस पर तरस आता लेकिन कुछ कहना ठीक भी नहीं लगा।  एक दिन मैंने उसे क्लास के बाहर बुलाया और उससे कहा -"बेटा ये तुम रोज़ गन्दी यूनिफार्म क्यों पहनते हो ?"
उसकी आँख डबडबा गयीं लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं बोला।  
मैंने फिर कहा -"आप अब सिक्स्थ क्लास में आ गए हो, इतने बड़े तो हो गए हो की अपना बेग जमा सको , अपनी यूनिफार्म साफ सुथरी रख सको अपने जूते पोलिश कर सको।  आपके मम्मी पापा बिज़ी रहते हैं तो कम से कम आप खुद कह सकते हो की मेरी ड्रेस धो दो, प्रेस कर दो ,जूते आप खुद रात में पोलिश कर सकते हो है न ?" 
वह एकटक मुझे देखता रहा। आँखें अभी भी भरी हुईं थीं शायद घर में जो उपेक्षा उसे मिल रही थी वह उस पर हावी थी।  
मैंने फिर समझाया " देखो बेटा बहुत सारे पेरेंट्स नौकरी करते हैं सुबह जल्दी घर से जाते हैं उनके बच्चे भी अपना काम खुद करते हैं , है ना ? फिर खुद काम करना तो अच्छी आदत है आप अपना खुद का ध्यान तो रख ही सकते हो।  आप रोज़ रोज़ सज़ा पाते हो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। प्रोमिस करो अब से रोज़ अपना बेग जमाओगे सभी कॉपी किताबें लाओगे और साफ सुथरे स्मार्ट बन कर आओगे। " 
इस बात से अपनी उपेक्षा का भाव कुछ कम हुआ , उसने जाना की बहुत सारे बच्चे अपना काम करते हैं  वह भी कर सकता है। उसने धीरे से सिर हिलाया और अपनी जगह पर बैठ गया।  
दूसरे दिन मैंने देखा उसने साफ सुथरी इस्त्री की हुई ड्रेस पहनी थी जूते पोलिश थे बेग ठीक से जमाया हुआ था , उसके चेहरे और आँखों में उलझन नहीं थी और पहली बार सुबह सुबह खड़ा नहीं होने से वह सिर उठा कर गर्वीली मुद्रा में बैठा हुआ था.  

* * *

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

स्वस्थ नजरिया रखें

कल बिटिया चिढती झल्लाती स्कूल से लौटी ये स्कूल वाले भी जाने क्या क्या नियम बना देते है ऐसा समझते है कि हम सब बच्चे तो बस फालतू काम ही करते रहते है। हर लडके लड़की का एक दूसरे से बस कोई गलत रिश्ता ही है ,क्या लडके और लड़कियाँ सिर्फ फ्रेंड नहीं हो सकते ? ऐसा ही है तो फिर को- एड स्कूल खोलते ही क्यों हैं ? 
समझते देर नहीं लगी आज फिर स्कूल के नियमों को लेकर बच्चों को या तो तगड़ी झाड़ पड़ी है या कोई सजा मिली है इसलिए उसका मन बहुत ख़राब है।  खैर उसे पानी पिलाया और फिर उससे पूछा क्या हुआ ? 
गुस्सा मन में लावे की तरह खदबदा रहा था सहानुभूति के कोमल स्पर्श से उसे फूट पड़ने की जगह मिल गयी। कहने लगी "मम्मी आज हम लड़कियाँ वाश रूम गए थे वहाँ कुछ लड़कियाँ शायद कुछ ज्यादा देर से होंगी ,जब हम वापस लौट रहे थे तभी कुछ लड़के भी शायद लाइब्रेरी या खेल के मैदान से लौट रहे थे। हम लोग रास्ते में मिले और बातें करते हुए वापस क्लास तक आये।  बस हमारे फिजिक्स वाले सर हमें डांटने लगे ,कहने लगे कि तुम लड़कियाँ झूठ बोल कर क्लास से बाहर जाती हो और लड़कों के बातें करने में ही तुम लोगों को मज़ा आता है। तुम लोग कितनी देर से क्लास से बाहर हो।" 
हमने कहा भी "सर हम अभी सिर्फ पाँच मिनिट पहले ही आपसे पूछ कर गए थे " लेकिन उन्हें शायद दूसरी लड़कियों का याद रहा और उन्होंने स्पोर्ट्स टीचर को बुलवा लिया।  वाश रूम की तलाशी हुई तो वहाँ कुछ लड़कियाँ बातें करती और बाल बनाती मिल गयीं। बस उनके साथ हमें भी आधे घंटे क्लास के बाहर खड़ा रखा और खूब लेक्चर पिलाया। कोई हमारी बात सुनने को तैयार ही नहीं था सबको बस ये लगता है कि लडके लड़कियाँ अगर साथ में है बातें कर रहे हैं मतलब उनके बीच कोई चक्कर है।  
गुस्से, क्षोभ और अविश्वास किये जाने का दुःख उसके चेहरे पर तमतमा रहा था। 
मैंने उससे कहा "ये तो बहुत गलत बात है अगर कोई कुछ कह रहा है तो उसकी बात का विश्वास तो करना ही चाहिए , और अगर लडके लड़कियों ने आपस में बात कर ली तो कोई गुनाह तो नहीं किया।  आखिर हमने ये जानते हुए कि स्कूल को -एड है अपनी लड़कियों का वहाँ एडमिशन करवाया है और ये बातचीत विचारों का स्वस्थ आदान प्रदान भी हो सकती है सिर्फ अपनी कुंठित मानसिकता के चलते ये मान लेना कि लडके लड़कियाँ सिर्फ गलत अर्थों में ही दोस्त हैं कहाँ तक उचित है ?"
"मम्मी हम लडके लड़कियाँ अगर कोरिडोर में खड़े हो कर किसी बात पर हँस रहे हों आपस में कोई हँसी मजाक भी कर लें तो टीचर्स को लगता है कि इनके बीच जरूर कोई गलत बात ही हो रही है ये तो जब जबकि हम लोग ग्रुप में होते हैं अगर सिर्फ एक लड़का और एक लड़की जो अच्छे दोस्त हैं साथ खड़े बात कर लें या क्लास में साथ बैठें कुछ पढ़ भी रहे हों तो बस शामत आ जाती है उन्हें टीचर्स इतना उल्टा सीधा बोलते हैं कि क्या बताऊँ ?"
"ये तो गलत बात है , दोस्ती तो दोस्ती है और बातचीत तो व्यक्तित्व के विकास की अहम् सीढ़ी है इसे हमेशा गलत नज़रिए से देखना तो बिलकुल उचित नहीं है। अगर टीचर्स को कोई शक है तो उन्हें उन बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखनी चाहिए ,ऐसे सब को ही गलत नज़र से देखना तो ठीक नहीं है।"
"वैसे भी अगर कोई बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड हैं तो वो तो स्कूल के बाद भी एक दूसरे से मिलते जुलते हैं मोबाइल, इन्टरनेट पर ,कोचिंग के बहाने कोई उन्हें रोक तो नहीं सकता लेकिन ऐसे दो चार लडके लड़कियाँ होते हैं उनके लिए सभी को एक ही डंडे से हाँकना तो गलत है ना ?"
वह अभी भी गुस्से में थी कहना होगा कि गुस्से से ज्यादा क्षुब्ध थी एक बहुत गलत और गंभीर इलजाम लगाये जाने से और उसकी सफाई में कुछ कहने ना देने से व्यथित थी।  
कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे हमारे टीचर्स अभी भी सोलहवीं सदी में जी रहे है जब लडके लड़कियों को ऐसे अलग रखा जाता था जैसे बारूद और आग को कहीं पास आ गए तो धमाका हो जायेगा।  
मैं तो उसकी कल्पना शीलता पर मुग्ध हो गयी।  
हमारी क्लास की एक लड़की है जो इतनी भोली और मन की अच्छी है कि वह सबकी मदद करती है चाहे लडके हों या लड़कियाँ वह किसी एक ग्रुप में नहीं रहती सबके साथ रहती है सभी से हँस के बात करती है तो टीचर्स उसके बारे में उलटी सीधी बातें करते हैं उसे डाँटते है कहते है कि तुम्हारा तो लड़कों के साथ ही मन लगता है इतना बुरा लगता है न सुन कर, अब सबसे बात करने में भी प्रॉब्लम है और किसी एक से बात करने में भी प्रॉब्लम है। ये टीचर्स समझते क्या हैं हम लोगों को ?
मुझे याद आया मेरे ही स्कूल में पाँचवी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों की दोस्ती पर कुछ टीचर्स स्टाफ रूम में बैठ कर जिस तरह हँसी मजाक करते थे  उनकी दोस्ती को शक की नज़रों से देखते थे कि उन टीचर्स की बुध्धि पर तरस आता था।  दस साल के बच्चे सिर्फ बच्चे होते हैं माना कि आज उन्हें जिस तरह का एक्सपोज़र मिल रहा है प्यार, गर्ल फ्रेंड, बॉय फ्रेंड जैसी बातें अनजानी नहीं हैं उनके लिए, लेकिन फिर भी उनके लिए ऐसी बातें करना या सिर्फ दोस्ती के लिए डांटना बहुत ही गलत है। 
सबसे पहले जरूरत है कि टीचर्स और माता पिता लडके और लड़कियों की दोस्ती के प्रति स्वस्थ नजरिया रखें , उन पर विश्वास करें, यदि उनकी दोस्ती में कोई ऐतराज़ जैसी चीज़ नज़र आये तो उन्हें उलटी सीधी बातें कहने के बजाय उनसे प्रेम और शांति से बात करें , उनके आकर्षण का कारण जानने की कोशिश करें। कई बार घर परिवार से मिल रही उपेक्षा या पढाई और माता पिता की आकांक्षा का दबाव उन्हें दोस्ती के भावनात्मक पक्ष से गहरे तक जोड़ देता है। उम्र का भी तकाज़ा होता है लेकिन वह महज़ आकर्षण होता है जो समय के साथ कम भी हो जाता है।लेकिन उसे शक की नज़र से देखना बिलकुल ऐसा है जैसे लूले नौकर की कहानी। 
एक कंजूस सेठ को अपने तिल धूप में सुखाना था उसकी निगरानी के लिए एक नौकर की जरूरत थी,लेकिन नौकर तिल खा न जाये इसलिए उसने खूब सोच विचार करके एक लूले को काम पर रखा। दूसरे दिन जब वह तिल देखने गया तो उसे तिल कुछ कम लगीं। उसने नौकर से पूछा तूने तिल खाई हैं क्या ?
नौकर बोला मैं बिना हाथ के तिल कैसे खा सकता हूँ ?
मालिक बोला क्यों तू हाथों में पानी लगा कर उसमे तिल चिपका कर भी तो खा सकता है।  
कविता वर्मा 


शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

बच्चों पर ना थोपें डर.

 अपने बच्चे के साथ पालक  शिक्षक मीटिंग में आयीं वे बहुत चिंतित थीं।  "मेम मेरा बेटा मैथ्स में बहुत कमजोर है आप ही बताइए उसे कैसे करवाऊं? आप उस पर विशेष रूप से ध्यान दीजियेगा ,उसे रोज़ कुछ एक्स्ट्रा होमवर्क दे दिया करिए। " 
मैं  ने कुछ असमंजस में उस बच्चे की ओर  देखा , जहाँ तक मुझे याद  था बच्चा मैथ्स में अच्छा कर रहा था। हाँ थोड़ी झिझक थी लेकिन कमजोर नहीं कहा जा सकता था।  मैंने अपने रजिस्टर में उसके नंबर देखे वह ठीक ठाक नंबरों से पास हुआ था।  
माँ की बातें सुनकर वह संकोच से भर गया उसकी आँखों में एक झिझक ,एक भय झलकने लगा।  मैंने उससे पूछा -"बीटा मैथ्स में कोई दिक्कत है ? आपको समझ में आता है ? 
उसने धीरे से सिर हिलाया और बोल हाँ।  
मैंने उसकी मम्मी से पूछा आप बताइए ऐसी कोई दिक्कत जो बच्चा आपसे बताता हो , उसे समझने में कोई परेशानी है या कोई और बात। 
वे बोलीं ऐसी तो कोई बात नहीं है ,वो मुझे कुछ बताता भी नहीं है ,जब भी उसे मैथ्स करने को कहती हूँ कहता है मैंने सब काम स्कूल में ही कर लिया। घर पर तो मैथ्स पढना ही नहीं चाहता।  
मैंने एक  रजिस्टर पलटा उसके ग्रेड्स देखे होम वर्क और कॉपी जमा करने में उसे ए ग्रेड था मतलब उसका काम पूरा रहता है और वह कॉपी भी समय पर जमा करवाता था। 
मैंने उन्हें समझाते हुए कहा देखिये आपका बच्चा क्लास में जो पूछा जाये उसका जवाब भी देता है , उसका काम पूरा रहता है कॉपी टाइम पर चेक करवाता है मुझे नहीं लगता कि वह मैथ्स में कमजोर है। 
वे धीरे से बोलीं "मेम दरअसल बात ये है कि इसके पापा को बिलकुल टाइम नहीं मिलता और मेरा मैथ्स बहुत कमजोर है इसलिए मैं इसे पढ़ा नहीं पाती हूँ। ये क्या करता है मुझे नहीं पता लेकिन हाँ जब भी पढने बैठाओ मैथ्स से जी चुराता है इसलिए मुझे बहुत चिंता होती है।"  
ओह्ह तो ये बात है दरअसल बच्चा नहीं ,बच्चे की माँ मैथ्स में कमजोर है और वह अपना डर बच्चे पर उंडेल रही हैं ,इसलिए बच्चा अब घर पर मैथ्स नहीं करना चाहता।  
ये तो सिर्फ एक बानगी है ऐसे कई माता पिता हैं जो अपने डर बच्चों पर उंडेल कर उसकी ओट ले लेते हैं।  
ये सच है कि बच्चे माता पिता का प्रतिरूप होते है लेकिन इसके अलावा भी वे एक स्वतंत्र व्यक्तित्व होते हैं। उनकी अपनी अभिरुचि होती हैं। जरूरी तो नहीं कि अगर माँ मैथ्स या इंग्लिश में कमजोर रही हो तो उसका बच्चा भी इन विषयों में कमजोर होगा।  दरअसल ऐसे माता पिता बच्चों के माध्यम से अपनी कमजोरी पर पर्दा डाल कर खुद को एक ओट देना चाहते हैं।  जब वे बच्चे को बार बार वही विषय पढ़ने को कहते हैं जिसमे उन्हें सबसे ज्यादा डर लगता है। अपने डर को उस विषय की कठिनता से जोड़ कर वे बच्चे को उस विषय में अग्रणी देखना चाहते हैं इसमे कोई दो राय नहीं है। लेकिन कई बार इसका उल्टा असर होता है।  बच्चा बार बार कठिन विषय है ज्यादा पढो सुनते सुनते परेशान हो जाता है और या तो उस विषय से खुद ही खौफ खाने लगता है या घर में मम्मी पापा के सामने उस विषय को पढ़ने से कतराने लगता है।  
मैंने कई ऐसे बच्चे देखे हैं जो मैथ्स में अच्छे थे लेकिन कहते थे कि मैं मैथ्स में कमजोर हूँ , उनके लिए ट्यूशन लगी है लेकिन फिर भी उनका आत्मविश्वास नहीं बन पाता क्योंकि वे हमेशा अपने माता पिता से सुनते रहे हैं कि फलां विषय बहुत कठिन है ठीक से पढो। ऐसे में विषय में ठीक होते हुए भी बच्चे के मन में एक डर बैठ जाता है।  

अगर आपको किसी विषय से डर लगता है तो उस पर काबू पाने की कोशिश करिए , अगर हो सके तो बच्चे के साथ ,उसकी किताबों की मदद से उस विषय को पढ़ने ,समझने की कोशिश करें लेकिन अपना डर बच्चों पर ना थोपें उन्हें अपनी कमजोरियां और खूबियाँ खुद बनाने और पहचानने दीजिये।  
kavita verma 

सोमवार, 27 मई 2013

निर्णय गलत नहीं था ....

निर्णय गलत नहीं था ....

छोटी बेटी शुरू से नाज़ुक सी ही रही इसलिए उस पर पढाई का बहुत जोर हमने कभी नहीं डाला लेकिन हां शुरू से ही अच्छे नंबरों से पास भी होती ही रही .वैसे भी वो आर्टिस्ट है इसलिए फिजिक्स केमिस्ट्री मैथ्स पढना उसके लिए कभी आसन नहीं रहा . लेकिन इन सब्जेक्ट के साथ आगे सारी लाइनें खुली रहती हैं इसलिए उसे दिलाया . 

8 th तक तो कभी कोई परेशानी आयी ही नहीं .9th में सोशल साइंस जैसा बोर सब्जेक्ट पढना उसके लिए बहुत कठिन हो गया .उस समय उसे हौसला दिया जाता जैसे तैसे करके सिर्फ पास हो जाओ बस और दो साल की बात है फिर ये सब्जेक्ट कभी नहीं पढना पड़ेगा .खैर वो दो साल निकल ही गए और सोशल साइंस में भी अच्छे नम्बर आ गए . 

11th और 12th में सब्जेक्ट का कोर्स इतना ज्यादा है जितना कभी हमने ग्रेजुएशन में पढ़ा था .वह अपने आप से और सब्जेक्ट से जूझती रही .हमारे यहाँ मार्किंग सिस्टम भी ऐसा है की 11th में हर तरह से बच्चों का आत्मविश्वास तोडा जाता है . अगर उन्हें चार नंबर मिलते हों तो दो ही दिए जाते है स्कूलों में टीचर्स मेनेजमेंट के दवाब में इस कदर झल्लाए रहते हैं कि क्लास में पढ़ाने से ज्यादा लेक्चर पिलाते रहते हैं और उनके लेक्चर से बौखलाए बच्चे घर में माता पिता और कोचिंग के टीचर्स से भी वही लेक्चर सुनते घबरा जाते हैं .

खैर 11th भी जैसे तैसे हो गया लेकिन 12th में उसे इतनी घबराहट थी कि लगा कहीं वो इतना प्रेशर झेलने में नाकामयाब न हो जाए . बहुत सोच विचार कर मैंने अपनी जॉब छोड़ने का निश्चय किया .हालांकि  उसकी पढ़ाई करवाना तो मेरे बस का नहीं था इतने सालों में मैं विषय से पूरी तरह से कट चुकी थी लेकिन उसके आत्मबल को बनाये रखने और बढ़ाने के लिए ये जरूरी भी था . 

मैंने सोच लिया अब से हर कदम पर बिटिया के साथ रहूंगी . शुरुआत की उसे अपने पास बैठा कर पढ़ाने की .अब तक वह वैसे ही पढ़ती थी जैसे स्कूल और कोचिंग में पढाया जाता था मैंने उसे प्रश्न के हिसाब से पढने को कहा .एक ही उत्तर के लिए कई अलग अलग तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं कई प्रश्न घुमा फिरा  कर पूछे जाते है होता ये था कि  उसे आता सब था लेकिन वह प्रश्न ही नहीं समझ पाती थी .कुछ दिन वह रोज़ मेरे साथ प्रश्न के हिसाब से उत्तर लिखने की प्रेक्टिस करती रही  फिर खुद से करने लगी .लेकिन अभी बहुत प्रेक्टिस जरूरी थी .

अभी उसका आत्मविश्वास जो डगमगाया हुआ था उसे थामना बहुत जरूर था . उसकी बड़ी बहन यानि बड़ी बेटी ने उसके लिए क्वेश्चन पेपर बनाये पहले सरल फिर कठिन उन्हें चेक किया और फिर साथ बैठ कर उनके बारे में डिस्कस किया कहाँ क्या और कैसे लिखा जाना चाहिए ये बताया . 

उसके पापा से कई बार इसी बात को लेकर लड़ाई हुई की आकर सिर्फ टी वी मत देखा करो उसके साथ बैठो .उसे लगना चाहिए सब उसके साथ हैं .एक बार हम दोनों मूवी देखने जाने के लिए तैयार हो कर घर से निकलने ही वाले थे दूसरे दिन उसका पेपर था तैयारी हो चुकी थी ,कि  वह थोड़ी रुआंसी सी दिखी बस जाना कैंसिल और पापा उसके साथ बैठ कर गणित के सवाल हल करने लगे . जब दो चार सवाल उसने पापा को करना सिखा दिया तो उसके चेहरे की चमक लौट आयी . 

फिर भी होम एग्जाम में जब उसका रिजल्ट ठीक नहीं आया तो बहुत खीज होती थी उसे दबाना बहुत मुश्किल होता था लेकिन फिर भी उसका हौसला ही बढाया .

मैंने जॉब छोड़ने का निर्णय लिया मन में सिर्फ और सिर्फ उसकी पढ़ाई उसके साथ रहने की चाह थी . कभी कभी मन में एक कसक भी होती थी लेकिन फिर खुद को समझाया अपने बच्चो से बढ़ कर कुछ नहीं है .
परीक्षा की तैयारियों के बीच बीच में वह आकर मेरे पास बैठ जाती थोड़ी देर लडिया लेती गपिया लेती और फिर नए जोश से जुट जाती .कभी कभी जब हताश होती तो मैं उसे खींच लाती चलो छोडो हम टी वी देखते है .थोड़ी देर के लिए उसका मन पढ़ाई से हट जाता और फिर नयी उर्जा से पढना शुरू करती . 

ऐसे समय में बड़ी बिटिया को अलग से यही कहती उसे बूस्ट अप करो उसका मोरल डाउन नहीं होना चाहिए अगर कुछ नहीं आता है तो धीरे से उसे बताओ चिढो मत उसे ये एहसास कभी मत कराओ की उसे नहीं आता .हालांकि वह भी कोई बहुत बड़ी नहीं है लेकिन उसने भी वक्त की नजाकत को समझ कर उसे बहुत सपोर्ट किया जो बड़े बड़े अनुभवी भी नहीं कर पाते . 

एग्जाम टाइम में कभी उसे पढने के लिए जोर नहीं डाला बल्कि यही कहा की तुम्हे सब आता है तुम कर लोगी तुमने सब कर लिया है बस अब मस्त रहो .

आज सात महीनों की धीर ,लगन ,उसका साथ, उसका हौसला बढाया जाना सब सफल हो गया आज 12th का रिजल्ट आ गया बिटिया अच्छे नंबरों से पास हो गयी .

ये सब मैं खुद की वाहवाही के लिए नहीं लिख रह हूँ बल्कि ये एक छोटी सी कोशिश है एग्जाम का प्रेशर झेल रहे बच्चों के माता पिता को एक गाइड लाइन देने कि हमारी छोटी छोटी कोशिशें उन्हें मंजिल की राह में आने वाली मुश्किलों को फूल में बदल देती है .आज जिस तरह बच्चे आत्मघाती कदम उठा रहे है जिसके बाद सारे रास्ते ही ख़त्म हो जाते है उनसे उन्हें बचाने की .अपने बच्चों पर विशवास करिए उनका हौसला बढाइये मंजिल तो वे खुद पा लेंगे . 

कविता वर्मा 

शुक्रवार, 10 मई 2013

यही तो चाहिए . ....

उस लड़की को पढ़ाने से पहले ही उसके बारे में जानकारी मिल गयी थी मुझे .ग्यारह साल की कक्षा छह की वह मासूम सी लड़की का मन पढ़ाई लिखाई में बिलकुल नहीं लगता था . हाँ क्लास के बाहर वह हमेशा चहकती हुई दिखती थी . 
क्लास में मेरा पहला दिन था वह पहली बेंच पर बैठी थी परिचय बातचीत के दौरान वह सहज ही रही . अगले दिन से पढ़ाई शुरू हुई .मैंने देखा उसका मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता था .जब भी मैं कुछ समझाती उसकी आँखे यहाँ वहाँ घूमती रहती वह कभी ध्यान लगा ही नहीं पाती थी . समझाते हुए कई बार उसका नाम लेकर मैं पूछती बेटा समझ आ रहा है वह असमंजस की स्थिति में सर हिला देती . लिखने के समय भी वह ऐसे ही बैठी रहती .एक दिन मैंने उससे कहा बेटा ऐसे काम नहीं चलेगा तुम्हे लिखना तो पड़ेगा न ? मैं किसी की कॉपी नहीं दूँगी काम पूरा करने के लिए . फिर मैं ने क्लास में सबसे कहा की मुझसे पूछे बिना गणित की कॉपी कोई भी किसी को नक़ल करने के लिए नहीं देगा . अगर किसी ने कॉपी दी तो फिर वो कॉपी उसे वापस नहीं मिलेगी उसे नयी कॉपी बनानी पड़ेगी . 
इसका असर ये हुआ की उसे ये समझ आ गया की अब उसे ही अपना काम करना है . मैंने उसे समझाया की क्लास में जो समझाया जा रहा है उसे ध्यान से सुने नहीं समझ आया तो मुझसे पूछे लेकिन काम पूरा करना ही है . होमवर्क भी मैं वही देती थी जो क्लास में समझा दिया गया हो . 
धीरे धीरे उसने ध्यान देना और लिखना शुरू किया .वह एक ऐसा टॉपिक था जो पिछले ३ सालों से हर साल पढ़ाया जा रहा था .उसमे भी उसके कांसेप्ट क्लीयर नहीं थे . पिछली क्लासेस में उसे हर बार किसी की कॉपी दिलवा दी जाती थी और वह कॉपी पूरी कर लेती थी . टीचर्स कॉपी चेक कर साइन कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती थी . हमारे स्कूल में फोटोकॉपी देने की बहुत बुरी प्रथा थी . वैसे ये शुरू हुई थी सिर्फ बीमार बच्चों की मदद के लिए लेकिन कोई कण्ट्रोल न होने से टीचर्स जिसका भी काम पूरा नहीं है उसे किसी अच्छे बच्चे की कॉपी से फोटो कॉपी करवा कर दे देती थीं . मैं इस फोटो कॉपी प्रथा के सख्त खिलाफ थी और बच्चे ये बात जानते थे इसलिए थोड़ी बहुत आनाकानी के बाद अपना काम पूरा करना सीख ही जाते थे . 
अब धीरे धीरे उसने सुनना और लिखना शुरू किया .जब पहली बार वह होमवर्क करके लाई मैंने उसे बहुत शाबाशी दी उसकी आँखे चमक उठीं . 

पहला चेप्टर ख़त्म हुआ अब अगला चेप्टर भी कठिन नहीं था वह भी पहले पढाया जा चुका था लेकिन वही की उसने तो सिर्फ कॉपी पूरी की थी . पांचवी तक किसी बच्चे को फेल किया ही नहीं जा सकता इसलिए वह पास होते हुए कक्षा छह तक आ गयी लेकिन अब वह खुद ही उलझन में रहती थी . कभी आँख मिला कर बात नहीं करती थी . पूरे समय एक अजीब सा असमंजस उसकी आँखों में रहता था . वह भी जानती थी की ये पहले पढाया जा चुका है और सभी बच्चे अपने आप कर रहे है इसलिए पूछने में हिचकिचाती थी . 
उस दिन उसके पास खड़े होकर मैंने देखा कि उसे साधारण गुणा  भाग करने में भी परेशानी हो रही है .मैंने उसकी कॉपी में एक दो सवाल समझाये और उससे कहा मैं तुम्हे तीन दिन देती हूँ उसमे तुम्हे ये सीखना है घर में रोज़ पच्चीस सवाल करना है तुम ये कर लो बाकी मुझ पर छोड़ दो . 
वह बोली मेम मैं मैथ्स में बहुत कमजोर हूँ .
मैंने कहा किसने कहा मुझे तो ऐसा नहीं लगता बस तुमने प्रेक्टिस थोड़ी कम की है उसे हम अब करेंगे .तुम रोज़ घर में प्रेक्टिस करो मैं चेक करूंगी फिर देखना कैसे तुम मेथ्स में बढ़िया हो जाओगी . तुम भी चाहती हो न कि कोई तुम्हे कमजोर न समझे ?  
उसकी आँखों में चमक आ गयी . एक विश्वास चेहरे पर फ़ैल गया उसने डबडबाती आँखों से सर हिल हर हाँ कहा .अगले दिन उसने बताया की मैंने मम्मी से कहा उन्होंने मुझे पच्चीस सवाल करने को दिए थे मैंने सब सही किये . 
मैंने उसकी पीठ थपथपा कर कहा बस बहुत जल्दी तुम क्लास की अच्छी स्टूडेंट बन जाओगी . 
जल्दी ही वह क्लास में ध्यान देने लगी सुन कर समझने और अपने आप सवाल हल करने लगी . 

किसी कारणवश मुझे जॉब छोड़नी पड़ी . आज वही लड़की फेस बुक पर मिली और बोली मेम आपकी वजह से मैं मेथ्स में अच्छा करने लगी हूँ पहली बार मुझे बहुत अच्छे नंबर मिले हैं और मैं पास हुई हूँ .सच कहूँ मुझे इतनी ख़ुशी हुई की बता नहीं सकती एक टीचर को यही तो चाहिए . 

रविवार, 3 मार्च 2013

मुल्ला नसीरुद्दीन

मुल्ला रास्ते पर जा रहे थे तभी किसी ने पीछे से उन्हें एक चपत लगाईं मुल्ला उसे लेकर अदालत में गये. लेकिन जज उस आदमी का दोस्त निकला उसने उसे सज़ा तो सुनाई लेकिन क्या उसने सज़ा पाई? मुल्ला ने कैसे इसका प्रतिकार किया सुनिए कहानी मुल्ला नसीरुद्दीन में ....

http://www.youtube.com/watch?v=4i9wb_ibT-Q

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

कहानी शेर और चूहा

शेर जंगल में आराम कर रहा था की चूहा उसपर चढ़ गया और शरारत करने लगा,  शेर की आँख खुल गयी और उसने चूहे को पकड़ लिया ..चूहे ने फिर क्या किया कैसे अपनी जान बचाई सुनिए कहानी शेर और चूहा    

https://www.youtube.com/watch?v=VAZNI1bj6fQ

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

कहानी अपना काम आप करो

चिड़िया के बच्चे डरे हुए थे. वे अभी उड़ना नहीं जानते थे लेकिन किसान तो खेत की फसल कटवाना चाहता था ,अब ऐसे में वे कहा जाते? जब चिड़िया घर लौटी वह निश्चिन्त थी आखिर क्यों??

https://www.youtube.com/watch?v=VWOkaNkUm-g

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

सुनो कहानी मूर्तिकार की कमी

वह बहुत कुशल मूर्तिकार था। अपनी कला का इस्तेमाल करके उसने खुद को बचा तो लिया लेकिन फिर क्या हुआ कि वह पकड़ा गया ...जानने के लिए सुनिए कहानी मूर्तिकार की कमी

https://www.youtube.com/watch?v=thPJChUxIko

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

कहानी खरगोश की चतुराई

 कहानियाँ बच्चों के विकास में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करती हैं।आजके व्यस्त समय में माता पिता के पास इतना समय नहीं है की वे बच्चों को कहानियाँ सुनाये।परिवार एकल हो गए दादा दादी के पास बैठने का बच्चों के पास समय नहीं है। टी वी, कंप्यूटर,पढ़ाई बच्चों को इतनी मोहलत नहीं देते की वे कहानियाँ सुन सकें। बच्चों के लिए एक छोटा सा प्रयास किया है जिससे उनके बचपन को इस अनद से भी भरा जा सके।
आशा है आपको ये प्रयास पसंद आएगा और आप अपने और अपने आस पास के बच्चों तक इसे पहुचाएंगे। https://www.youtube.com/watch?v=whYRjbPfFnM