tag:blogger.com,1999:blog-4084322897020205282024-03-18T00:51:57.245-07:00चहल-पहलबचपन जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था जाने कितने ही तनावों,अपेक्षाओं और उपेक्षाओं का सामना करती है .इन्हें सहेजने वाले किन स्तिथियों और तनावों से गुजरते हैं इसे केनवास देने की एक छोटी सी कोशिश है चहलपहल.स्कूल कोलेज की घटनाएँ हैं जिन्हें उसी रूप में रखने का प्रयास है जिनके विभिन्न पहलुओं को अलग अलग नज़रिए से समझा जा सकता है.kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-28121261806501295132016-08-06T11:28:00.001-07:002016-08-06T11:28:25.439-07:00'जंगल की सैर '<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: #f5f8fa; color: #292f33; font-family: Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 18px; white-space: pre-wrap;">मेरी पुरुस्कृत बाल कहानी 'जंगल की सैर ' मातृभारती पर। पढ़े और अपनी राय दें </span><br />
<span style="background-color: #f5f8fa; color: #292f33; font-family: Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 18px; white-space: pre-wrap;"><br /></span>
<span style="background-color: #f5f8fa; color: #292f33; font-family: Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 18px; white-space: pre-wrap;">
</span><a class="twitter-timeline-link" data-expanded-url="http://matrubharti.com/book/5492/" dir="ltr" href="https://t.co/kr5ZEgn3nK" rel="nofollow" style="background: rgb(245, 248, 250); color: #038543; font-family: Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 18px; text-decoration: none; white-space: pre-wrap;" target="_blank" title="http://matrubharti.com/book/5492/"><span class="tco-ellipsis"></span><span class="invisible" style="font-size: 0px; line-height: 0;">http:</span><span class="js-display-url">matrubharti.com/book/5492/</span><span class="invisible" style="font-size: 0px; line-height: 0;"></span><span class="tco-ellipsis"><span class="invisible" style="font-size: 0px; line-height: 0;"> </span></span></a></div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-17135538017044899942016-02-03T01:39:00.001-08:002016-02-03T01:39:18.885-08:00एक यहूदी लोक कथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सुनो कहानी कविता वर्मा<br />
एक यहूदी लोक कथा<br />
https://www.youtube.com/watch?v=OTvOsf0fHjs</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-9911787519193973662015-09-18T04:05:00.001-07:002015-09-18T04:05:12.329-07:00त्यौहार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;">मुझे याद है जब हम छोटे थे नवरात्री की अष्टमी से दिवाली की छुट्टियाँ लग जाती थीं। झाबुआ जिले के रानापुर में रहते पहली बार गरबे सीखे थे। दशहरे के दिन से रोज़ सुबह शाम घर के दरवाज़े पर गोबर से चौक लीप पर रंगोली बनाई जाती थी। छोटा सा गाँव था उसमे बहुत बड़े पद नाम वाला हमारा घर और आसपास बस्ती में रहने वाली मेरी सहेलियाँ। गोबर से लीपना आता नहीं था। दादी अड़ोस पड़ोस में किसी को आवाज़ दे कर गोबर मँगवाती और वह गोबर देने के साथ ही चौक लीप जाता। फिर शुरू होता एक सीध में गिन गिन कर बिंदी डालना रंगोली बनाना और रंग भरना। रंगोली बना कर तैयार हो कर निकल पड़ना मोहल्ले में सबकी रंगोली देखने। </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने जब रंगोली बनाना सीखा तब सबसे ज्यादा खुश दादी थीं। बहुत पहले बुआ रंगोली बनाती थीं फिर वे शादी हो कर अपने घर चली गई। मम्मी बुंदेलखंड से हैं वहाँ रंगोली बनाने का रिवाज़ नहीं है तो वे बना नहीं पाती थीं। ऐसे में दादी अड़ोस पड़ोस की लड़कियों को मनाती बुलाती थीं लेकिन त्यौहार पर किस के पास समय होता है? जब मैंने रंगोली बनाना सीखा दादी को परम संतोष था कि अब दीवाली दशहरा घर का आँगन सूना नहीं रहेगा। घर में बेटियों के महत्व को प्रतिपादित करती ये छोटी सी पर बहुत बड़ी बात थी। बहुएँ घर के रीति रिवाज़ों में रचती बसती हैं पर बेटियाँ तो उन रीति रिवाज़ों की घूँटी पी कर ही बड़ी होती हैं। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">दीवाली की सफाई में पूरा घर लगा होता था। छत पर धूप में सामान रखना उठाना डिब्बे साफ़ करना जाले झाड़ना पलंग सोफे खिसका कर सफाई करना कितने ही काम हँसते खेलते हो जाते थे। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">अर्ध वार्षिक परीक्षाएँ दिवाली बाद और वार्षिक परीक्षायें होली बाद होती थीं। होली भी बड़े मौज मस्ती में मनती थी गुझिया पपड़ी रंग पिचकारी। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">एकल परिवार होने से और माता पिता दोनों के कामकाजी होने से त्यौहार मनाने में पहले जैसा उमंग उत्साह अब रहा नहीं। रही सही कसर स्कूल के एकेडेमिक टाइम टेबल ने पूरी कर दी। राखी के समय क्वार्टरली एग्जाम दिवाली या नवरात्री के समय अर्धवार्षिक (हाफ इयरली) और होली के समय वार्षिक परीक्षाएँ (एनुअल एग्जाम) . उस पर इल्ज़ाम ये कि आजकल के बच्चे तीज त्यौहार मनाना नहीं जानते उन्हें अपनी संस्कृति को जानने की फुर्सत ही नहीं है। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">जब स्कूल में पढ़ाती थी छुट्टियों के लिये बच्चों को ढेर सारा होमवर्क देने का आदेश आ जाता था। बुरा लगता था मन नहीं होता था बच्चे भी उदास हो जाते थे। पर क्या करें मजबूरी थी क्योंकि क्या होमवर्क दिया गया है उसकी एक कॉपी जमा करवानी पड़ती थी। तब मैं होमवर्क करने का टाइम टेबल बना देती थी उन्हें बता देती थी किस दिन कितने प्रश्न हल करने हैं और त्यौहार से दो दिन पहले सब ख़त्म कर बेग टांड पर चढ़ा देना। कुछ बच्चे फिर भी उदास रहते मैम आपने तो कह दिया पर मम्मी नहीं मानेंगी। पता नहीं ये मम्मियाँ क्यों नहीं समझतीं कि बच्चों के लिए भी ब्रेक जरूरी है। पूरा मानसिक आराम जिसमे पढाई की कोई चिंता उनके दिमाग में न रहे। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">वार्षिक परीक्षा के बीच होली पड़ी मैंने बच्चों से पूछा होली खेलना है ? बड़े उत्साह से आवाज़ आई यस मैम लेकिन। ये लेकिन तो अब हर त्यौहार के साथ जुड़ गया। मैंने कहा सुबह जल्दी उठना जैसे रोज़ स्कूल आने के लिए उठते हो। दूध पी कर दो घंटे पढ़ाई करना फिर नाश्ता करके दो घंटे होली खेलना। मम्मी मना करें तो कहना मैम ने कहा है होली जरूर खेलना नहीं तो एग्जाम में नंबर कट जायेंगे। दिन में थोड़ा आराम करना और शाम को फिर एक घंटे पढ़ाई करना। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">एग्जाम के बाद रिजल्ट के लिए पेरेंट्स आये तो कइयों ने शिकायत की। "मैम आपने कहा था होली जरूर खेलना ? मैंने कितना मना किया पर ये माना ही नहीं।" </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने उनसे पूछा "आप अपने बचपन में होली खेलते थे ना फिर आपके बच्चे क्यों नहीं ?"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"लेकिन मैम एग्जाम।"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"हाँ एग्जाम हैं लेकिन उसने पढाई तो की ना ?"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"जी मैम सुबह दो घंटे बिना कहे पढाई की। कहने लगा मैम ने कहा है पहले दो घंटे में इतना कोर्स याद करना फिर होली खेलना।" </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"फिर क्या दिक्कत है ? अगर वह पढ़ाई के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझ रहा है तो उसे त्यौहार मनाने से क्यों रोका जाये ? बच्चे जब तक अपने त्यौहार नहीं मनाएँगे तो उनके बारे में जानेंगे कैसे ? ऐसे तो उनकी जिंदगी कितनी नीरस हो जायेगी ? हमारे त्यौहार हमारी जिंदगी की आपाधापी को कम करके अपनों के साथ मिलने जुलने का जीवन की एकरसता को तोड़ने का काम करते हैं। आप क्यों ये स्वाभाविक जीवन प्रवाह रोकना चाहते हैं ? कम से कम प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के दौरान तो उन्हें भरपूर जीने दीजिये। जीवन की विविधता देखने समझने दीजिये।" </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">इस पीढ़ी के माता पिता ने जागरूक होने का अर्थ बच्चों की पढाई लिखाई हॉबी क्लासेज करियर खाने पीने का ध्यान रखने से तो लिया है लेकिन क्या हम उन्हें जीवन पद्धति रीति रिवाज़ त्यौहार तनाव दूर करने के प्राकृतिक तरीकों से दूर तो नहीं कर रहे हैं ? </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">कविता वर्मा </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"> </span></div>
</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-85898259553877752722015-01-11T12:39:00.002-08:002015-01-11T12:39:52.386-08:00पी टी एम खट्टे मीठे अनुभव <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: medium;">टीचिंग जॉब में बच्चों के साथ नित नए अनुभव होते हैं जो न सिर्फ आपको रोमांचित करते हैं बल्कि कई नई नई बाते सिखाते हैं और एकरसता नहीं होने देते। हर दिन नए अनुभव हासिल करने के लिए एक मौका होता है और इनका सबसे रोमांचक हिस्सा होता है पालक शिक्षक मीटिंग जिसे हम पी टी एम कहते है। हालांकि कई बार पेरेंट्स के कड़े तेवरों का सामना भी करना पड़ता है तो कई पेरेंट्स इतने ध्यान से बात सुनते और समझते हैं कि अपनी समझदारी पर खुद को ही शाबाशी देने का मन करता है( बाकि तो ये थैंक लेस जॉब है )। हाँ ये मीटिंग बड़ी थकाऊ और कभी कभी उबाऊ भी होती हैं जब आपको एक ही बात बार बार कई घंटे तक दोहरानी होती है लेकिन ये भी सच है की अंत में कई खट्टे मीठे अनुभवों को लेकर उठते हैं। </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">कई बार पिछली बार की पी टी एम का रिज़ल्ट भी मिलता है तो कई बार पेरेंट्स के नज़रिये में आया बदलाव भी नज़र आता है। इस बार की पी टी एम के कुछ अनुभव आपसे साझा करना चाहती हूँ। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><b>और मन लग गया </b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">आज एक बच्ची अपनी मम्मी के साथ आई। पिछली बार के पी टी एम में जब वह आई थी तब उसकी मम्मी थोड़ा चिंतित थी। कहने लगीं इसे मैथ्स में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है करती है लेकिन बिलकुल बेमन से। मैथ्स तो बेसिक सब्जेक्ट है इसमें तो इंट</span><span style="font-size: medium;">रेस्ट होना ही चाहिए। हालांकि वह लड़की ठीक ठाक कर रही थी। हाँ </span><span style="font-size: medium;">मैथ्स में </span><span style="font-size: medium;">उसका मन कम लगता था ये तो मैंने भी नोटिस किया था। मैंने उसे समझाया "जब तुम बिना इंटरेस्ट के इतना कर लेती हो तो अगर सोच लो कि</span><span style="font-size: medium;"> मन लगा कर पढ़ोगी </span><span style="font-size: medium;">तो कितना अच्छा कर सकती हो, फिर इंटरेस्ट तो लेते लेते ही आएगा ना जैसे जब पहली बार मेगी खाते</span><span style="font-size: medium;"> है तो सबको उसका स्वाद अच्छा नहीं लगता लेकिन खाते खाते </span><span style="font-size: medium;">पसंद आने लगता है ना ? इसलिए थोड़ा और मन लगाओ। " </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">क्लास में उसमे आये परिवर्तन को मैंने नोटिस किया था वह खुद से सवाल हल करने लगी थी।समझ ना आने पर पूछ लेती थी। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">आज जब वह आई तो बहुत खुश थी। इस बार वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई थी। मैंने उससे पूछा "खुश हो उसने मुस्कुरा कर सिर हिलाया। फिर मेरी टॉफ़ी कहाँ है ?" </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">वह मुस्कुरा दी। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"अच्छा मम्मी ने तुम्हे टॉफ़ी दी ?"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"नहीं "</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"अरे ये तो गलत बात है न तुम्हे टॉफ़ी दी न मुझे। अब से हम मैथ्स नहीं पढ़ेंगे। ठीक है ना। "</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">" उसने इंकार में सिर हिलाया। "</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">" मैडम अब तो इसे मैथ्स बहुत अच्छा लगता है जब भी पढने को कहो बस मैथ्स ही करती है। " एक संतुष्टि उस की मम्मी की आँखों से होंठों तक पसरी थी। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">***</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><b>मिस्टर परफेक्टनिस्ट </b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">एक बच्चा अपने पापा के साथ आया था उसके मैथ्स में 25 में से 24 मार्क्स आये थे। वह खुश था मैं भी खुश थी। मैंने उसे शाबाशी दी उसके पापा तब तक चुप रहे फिर अचानक बोल पड़े "मैडम मैं सोचता हूँ कि अगर सिक्स्थ क्लास के इतने सिम्पल मैथ्स में ये 24 मार्क्स पर संतुष्ट हो जाता है तो ये एक तरह से इसकी ग्रोथ रुकने जैसा है। मेरा मानना है कि अगर ये परफेक्ट हो सकता है तो इसे उसके लिए कोशिश करना चाहिए। आपसे भी मैं इतना सपोर्ट चाहूँगा कि आप उसे फुल मार्क्स लेने के लिए प्रोत्साहित करें।"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने इस बीच दो तीन बार बच्चे की ओर देखा उसके चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे , उसकी ख़ुशी काफूर हो चुकी थी वह अपमानित सा महसूस कर रहा था और मैं समझ नहीं पा रही थी क्या कहूँ और उसके पापा थे की अपनी रौ में बोलते जा रहे थे। मन तो हो रहा था कि उनसे कहूँ की सिक्स्थ का जो मैथ्स आपके लिए सरल है उस १० साल के बच्चे के लिए तो चाईनीज़ सीखने जितना ही कठिन है। एक नंबर कम आना मतलब किसी कांसेप्ट का समझ ना आना नहीं है बल्कि ये तो साधारण गलतियों की वजह से है। एक मन हो रहा था कि पूछू जब आप सिक्स्थ में थे आपको कितने नंबर आये थे। अगर वे आपको याद नहीं हैं तो इसके ये नंबर कौन और कितने दिन याद रखेगा। या कि उनसे कहूँ कि अभी से परफेक्टनिस्ट होने का जो प्रेशर आप डाल रहे है इसकी वजह से जब उसे सच में परफेक्ट होना चाहिए तब तक वह कहीं विषय में अपनी रूचि ही न खो दे। लेकिन एक टीचर के रूप में बच्चों और पेरेंट्स के सामने शिष्टाचार की कई दीवारे होती हैं इसलिए खुद को रोक लिया। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">***</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><b>तो क्यों न कुछ और </b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">एक लड़की अपनी मम्मी के साथ आई वह पढने में बहुत अच्छी है उसकी मम्मी का भी कहना था कि उसे मैथ्स में कोई दिक्कत नहीं है वह जो भी करती है खुद ही करती है। बाकि सभी सब्जेक्ट्स में भी वह बहुत अच्छी है। देखा जाये तो बात चीत के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था कि अचानक मम्मी जी ने पूछा " मैडम आप कोई और बुक बता दीजिये जिससे इसे कुछ एक्स्ट्रा प्रैक्टिस करने को मिले या तो कोई ऐसी साइट बता दीजिये जहाँ से ये एक्स्ट्रा प्रोब्लेम्स सॉल्व कर सके। अभी तो इसके पास बहुत सारा समय होता है जिसे ये उपयोग कर सकती है। "</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"> बिटिया ने इस बात पर बुरा सा मुंह बनाया तो मम्मी समझाने लगीं "बेटा जितना एक्स्ट्रा मेहनत करोगी उससे तुम्हारी स्पीड अच्छी होगी। आगे किसी कॉम्पिटिशन में ये स्पीड ही आपके काम आएगी। और जितना करना हो करना, नहीं तो कोई बात ही नहीं है।"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"> हालांकि मैं और वह दोनों समझ रहे थे कि एक और बुक आने के बाद उसे करना थोपने की हद तक अनिवार्य हो जायेगा। खैर मैंने उन्हें एक दो ऑनलाइन साइट्स बताई और कहा मैं और पता कर के बताउंगी अभी अचानक तो मुझे याद नहीं आ रहा है। इसके सिवाय कोई और चारा ही नहीं था। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">*** </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><b>हमारे ज़माने में </b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">ऐसे ही एक बच्चे के पापा आये जिन्हे ये भी नहीं पता था कि साल में कितने एक्साम्स होते हैं उनमे से कितने एक्साम्स उसने नहीं दिए हैं। खैर बच्चा पढने में ठीक है अच्छा स्टूडेंट है इसलिए ऐसी कोई विशेष बात बताने के लिए नहीं थी उन्हें सिर्फ ये बताया कि अब फाइनल एक्साम्स के लिए रिवीजन शुरू करे। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">बस वे शुरू हो गए कहने लगे "एक एक सवाल को चार चार बार करो घोंट डालो हम तो पूरी पूरी कॉपियाँ भर देते थे इतनी प्रैक्टिस करते थे रोज़ दो घंटे मैथ्स करते ही थे। "</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">चूंकि बातचीत बड़े सौहाद्र पूर्ण अंदाज़ में चल रही थी इसलिए मैंने हँसते हुए कहा "सर आपके समय में टी वी नहीं था , इंटरनेट कम्प्यूटर गेम्स नहीं थे , इतने सारे असाइनमेंट नहीं दिए जाते थे ,इतनी सारी को करिकुलर एक्टिविटीज नहीं थीं इतनी स्पोर्ट क्लास हॉबी क्लास नहीं होती थीं। इनके पास ये सब है और इनका दिन वही चौबीस घंटों का ही है। "</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">एक क्षण को तो वे चुप हुए फिर हंसने लगे "हाँ मैडम ये तो है। मेरा बेटा बास्केट बॉल का खिलाडी है और हम लोग इतने व्यस्त है कि इसे बिलकुल समय नहीं दे पाते ये खुद ही सब करता है। "</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">***</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><b>पेरेंट्स के डर </b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">एक लड़की अपनी मम्मी के साथ आई वह लगातार तीन एक्साम्स में कुछ अच्छा रिजल्ट नहीं ला पा रही है। हालाँकि उस पर क्लास में भी ध्यान दिया है वह समझती है खुद करती भी है लेकिन घबरा जाती है प्रश्नों को समझ नहीं पाती और सब गड़बड़ हो जाता है। मैंने उसे प्रैक्टिस करने का तरीका बताया उसे हिम्मत बंधाई कि वह घबराया न करे उसे आता सब है बस घबराहट में वह प्रश्न समझ नहीं पाती । </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मेरी बात पूरी हुई भी नहीं थी कि उसकी मम्मी अचानक बोल पड़ीं " मैडम अगर ये नहीं कर पाई तो री एग्जाम तो होती है ना ? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये फेल हो गई तो इसे फिर से इसी क्लास में रिपीट करना पड़ेगा। ?वैसे मैडम आंठवी तक तो फेल नहीं करते ना। ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने बच्ची की तरफ देखा उसका चेहरा फक पड़ गया "मैंने कहा अरे इसकी नौबत ही नहीं आएगी वह समझदार है सिर्फ घबरा जाती है।अब ठीक से प्रैक्टिस करेगी तो बढ़िया कर लेगी आप चिंता ना करें।"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">लेकिन मम्मी के डर अपनी जगह थे ,"मैडम कभी फेल हो गई तो स्कूल से निकाल तो नहीं देंगे ना।?" </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैं मम्मी को कैसे चुप करवाऊँ जितना मैं उस बच्ची का हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रही थी उतना ही उसकी मम्मी अपनी घबराहट में उसे हतोत्साहित करने में लगी थीं। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">आखिर मैंने उससे कहा "बेटा जरा बाहर कॉरिडोर में जाकर देखो तो अपनी क्लास के और कितने बच्चे और उनके पेरेंट्स आये हैं?" जैसे ही वह दरवाजे तक गई मैंने दबे स्वर में उसकी मम्मी से कहा "देखिये वह पहले ही घबराई हुई है और री एग्जाम की बात करके आप उसे हतोत्साहित न करें। इस समय उसे खुद पर विश्वास दिलाना है। री एग्जाम होती है लेकिन हमें कोशिश ये करनी है की उसकी नौबत ही ना आये। " मम्मी को शायद बात समझ आ गई वो एकदम चुप हो गई। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">तब तक उसने आकर कहा मैडम कॉरिडोर में और कोई बच्चे नहीं हैं। "</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"ओ के बेटा अब ठीक से पढ़ना तुम कर सकती हो और कोई भी प्रॉब्लम आये मुझसे पूछना ठीक है ?"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"जी मैडम"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">कई बार लगता है की सी बी एस ई टीचर्स के लिए इतनी वर्कशॉप का आयोजन करता है उसे पेरेंट्स के लिए भी साल में कम से कम दो वर्कशॉप आयोजित करना, जरूरी करना चाहिए जिससे सही पेरेंटिंग की दिशा तय की जा सके। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">क्रमशः </span></div>
</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-22047616725172540892014-09-05T04:51:00.005-07:002014-09-05T04:55:07.724-07:00जवाब <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="background-color: white; font-size: large;">करीब पंद्रह सालों से शिक्षण के क्षेत्र में हूँ। रोज़ ही कई तरह के अनुभव होते है कुछ अच्छे कुछ मन को अच्छे न लगने वाले भी। ऐसे में सोचने लगती हूँ क्या अभी भी इस में बने रहना चाहिए ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<div>
<span style="font-size: large;">करीब चौदह साल की नौकरी के बाद दो साल का ब्रेक लिया उसके बाद फिर ज्वाइन किया। कहते है न समय की नदी में पानी बड़ी तेज़ी से बहता है वापसी पर सब कुछ बदल बदला सा लगा। कुछ आराम का असर था तो कुछ माहौल और काम के तरीके बदलने का। रोज़ सोचती थी क्या वापस ज्वाइन करके ठीक किया ? एक दिन मन सुबह से ही उदास था सुबह किसी से बात भी नहीं की बस रजिस्टर उठाया और क्लास में जाने के लिए सीढ़ियाँ उतरने लगी। सामने से एक लड़की कंधे पर बैग लटकाये सीढ़ियां चढ़ रही थी मेरे पास आकर पूछने लगी "आप कविता मेम हैं ना ?" </span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">हाँ ,सुनकर वह खुश हो कर कहने लगी "मेम आप को शायद मेरी याद नहीं होगी लेकिन आपने मुझे पढ़ाया है। "</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">"अच्छा "उदासी की एक हलकी सी परत उडी तो लेकिन धुंधला पन नहीं गया। "कब किस क्लास में ?"</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">"मेम अ ब स स्कूल में जब मैं <b>दूसरी कक्षा</b> में पढ़ती थी आप मुझे मैथ्स पढ़ाती थीं। मेम आपने ही मैथ्स में इतना इंटरेस्ट पैदा किया मुझे मैथ्स बहुत अच्छा लगने लगा। "</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">"ओह्ह ,उस स्कूल को छोड़े ही कई साल हो गए अब तुम कौन सी क्लास में हो। "</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">"मेम बारहवीं में। "</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">"और क्या सब्जेक्ट लिया है ?" खुद के इस सवाल पर हंसी आई खुद ही जवाब दिया मैथ्स !!! </span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">"यस मेम "उसने भी हंस कर जवाब दिया। " आपको देख कर अच्छा लगा मेम। </span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">कह कर वह आगे बढ़ गई साथ ही मन पर छाए धुंधलेपन को भी साथ ले गई। मन में उठने वाले नकारात्मक विचारों का इससे बेहतर कोई जवाब शायद हो ही नहीं सकता था। </span></div>
</div>
</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-80503644728033738622014-01-22T01:41:00.000-08:002014-01-22T01:44:06.334-08:00शिष्यों की परीक्षा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक शिष्य सोचा कि जब गुरूजी ने कहा है तो ये काम करना ही चाहिए ,इसलिए वह बार बार प्रयास करता रहा।<br />
http://www.youtube.com/watch?v=Ny62AHriu_g&feature=youtu.be<br />
<br />
<br /></div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-25269703628320108692013-12-05T06:09:00.001-08:002013-12-05T06:09:36.843-08:00 छोटी सी सलाह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">रोज़ सुबह बच्चों की यूनिफार्म चेक होतीं और वह बच्चा लगभग रोज़ ही कभी गन्दी यूनिफार्म कभी बिना इस्त्री किये कपड़े कभी बिना पोलिश किये जूते के लिए खड़ा होता। किताब कॉपियाँ नहीं लाना ,होमवर्क न करना ये भी रोज़ का ही काम था। हालाँकि वह पढ़ने में ठीक ठाक था पर अधिकतर खोया खोया ही रहता, शायद उसकी सुबह ही सजा से शुरू होती थी इसका असर था। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">स्टाफ रूम में अक्सर उस बच्चे की चर्चा होती थी लेकिन एक वितृष्णा के साथ , लगभग हर टीचर उसकी लापरवाही से परेशान थी। हाँ चर्चा इस बात की भी होती की वह शहर के करोड़पति का इकलौता बेटा था और उसकी माँ सुबह की फ्लाईट से बोम्बे जाती है शोपिंग करने और शाम की फ्लाईट से वापस लौट आती है। घर और बच्चा नौकरों के हवाले रहते हैं। सुबह जब वह स्कूल आता है तब मम्मी पापा सो रहे होते हैं और शाम को जब घर लौटता है वे अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं। उसे कुछ कहो तो वह सिर नीचा करके चुपचाप सुन लेता था एक शब्द भी न कहता। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">करीब महीने भर मैं उसे देखती रही उस पर तरस आता लेकिन कुछ कहना ठीक भी नहीं लगा। एक दिन मैंने उसे क्लास के बाहर बुलाया और उससे कहा -"बेटा ये तुम रोज़ गन्दी यूनिफार्म क्यों पहनते हो ?"</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">उसकी आँख डबडबा गयीं लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं बोला। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">मैंने फिर कहा -"आप अब सिक्स्थ क्लास में आ गए हो, इतने बड़े तो हो गए हो की अपना बेग जमा सको , अपनी यूनिफार्म साफ सुथरी रख सको अपने जूते पोलिश कर सको। आपके मम्मी पापा बिज़ी रहते हैं तो कम से कम आप खुद कह सकते हो की मेरी ड्रेस धो दो, प्रेस कर दो ,जूते आप खुद रात में पोलिश कर सकते हो है न ?" </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">वह एकटक मुझे देखता रहा। आँखें अभी भी भरी हुईं थीं शायद घर में जो उपेक्षा उसे मिल रही थी वह उस पर हावी थी। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">मैंने फिर समझाया " देखो बेटा बहुत सारे पेरेंट्स नौकरी करते हैं सुबह जल्दी घर से जाते हैं उनके बच्चे भी अपना काम खुद करते हैं , है ना ? फिर खुद काम करना तो अच्छी आदत है आप अपना खुद का ध्यान तो रख ही सकते हो। आप रोज़ रोज़ सज़ा पाते हो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। प्रोमिस करो अब से रोज़ अपना बेग जमाओगे सभी कॉपी किताबें लाओगे और साफ सुथरे स्मार्ट बन कर आओगे। " </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">इस बात से अपनी उपेक्षा का भाव कुछ कम हुआ , उसने जाना की बहुत सारे बच्चे अपना काम करते हैं वह भी कर सकता है। उसने धीरे से सिर हिलाया और अपनी जगह पर बैठ गया। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">दूसरे दिन मैंने देखा उसने साफ सुथरी इस्त्री की हुई ड्रेस पहनी थी जूते पोलिश थे बेग ठीक से जमाया हुआ था , उसके चेहरे और आँखों में उलझन नहीं थी और पहली बार सुबह सुबह खड़ा नहीं होने से वह सिर उठा कर गर्वीली मुद्रा में बैठा हुआ था. </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px;">
<span style="font-size: medium;">* * *</span></div>
</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-90491353197099115942013-10-21T11:04:00.000-07:002013-10-21T11:04:42.539-07:00स्वस्थ नजरिया रखें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #222222; font-family: arial; font-size: medium;">कल बिटिया चिढती झल्लाती स्कूल से लौटी ये स्कूल वाले भी जाने क्या क्या नियम बना देते है ऐसा समझते है कि हम सब बच्चे तो बस फालतू काम ही करते रहते है। हर लडके लड़की का एक दूसरे से बस कोई गलत रिश्ता ही है ,क्या लडके और लड़कियाँ सिर्फ फ्रेंड नहीं हो सकते ? ऐसा ही है तो फिर को- एड स्कूल खोलते ही क्यों हैं ? </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">समझते देर नहीं लगी आज फिर स्कूल के नियमों को लेकर बच्चों को या तो तगड़ी झाड़ पड़ी है या कोई सजा मिली है इसलिए उसका मन बहुत ख़राब है। खैर उसे पानी पिलाया और फिर उससे पूछा क्या हुआ ? </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">गुस्सा मन में लावे की तरह खदबदा रहा था सहानुभूति के कोमल स्पर्श से उसे फूट पड़ने की जगह मिल गयी। कहने लगी "मम्मी आज हम लड़कियाँ वाश रूम गए थे वहाँ कुछ लड़कियाँ शायद कुछ ज्यादा देर से होंगी ,जब हम वापस लौट रहे थे तभी कुछ लड़के भी शायद लाइब्रेरी या खेल के मैदान से लौट रहे थे। हम लोग रास्ते में मिले और बातें करते हुए वापस क्लास तक आये। बस हमारे फिजिक्स वाले सर हमें डांटने लगे ,कहने लगे कि तुम लड़कियाँ झूठ बोल कर क्लास से बाहर जाती हो और लड़कों के बातें करने में ही तुम लोगों को मज़ा आता है। तुम लोग कितनी देर से क्लास से बाहर हो।" </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">हमने कहा भी "सर हम अभी सिर्फ पाँच मिनिट पहले ही आपसे पूछ कर गए थे " लेकिन उन्हें शायद दूसरी लड़कियों का याद रहा और उन्होंने स्पोर्ट्स टीचर को बुलवा लिया। वाश रूम की तलाशी हुई तो वहाँ कुछ लड़कियाँ बातें करती और बाल बनाती मिल गयीं। बस उनके साथ हमें भी आधे घंटे क्लास के बाहर खड़ा रखा और खूब लेक्चर पिलाया। कोई हमारी बात सुनने को तैयार ही नहीं था सबको बस ये लगता है कि लडके लड़कियाँ अगर साथ में है बातें कर रहे हैं मतलब उनके बीच कोई चक्कर है। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">गुस्से, क्षोभ और अविश्वास किये जाने का दुःख उसके चेहरे पर तमतमा रहा था। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने उससे कहा "ये तो बहुत गलत बात है अगर कोई कुछ कह रहा है तो उसकी बात का विश्वास तो करना ही चाहिए , और अगर लडके लड़कियों ने आपस में बात कर ली तो कोई गुनाह तो नहीं किया। आखिर हमने ये जानते हुए कि स्कूल को -एड है अपनी लड़कियों का वहाँ एडमिशन करवाया है और ये बातचीत विचारों का स्वस्थ आदान प्रदान भी हो सकती है सिर्फ अपनी कुंठित मानसिकता के चलते ये मान लेना कि लडके लड़कियाँ सिर्फ गलत अर्थों में ही दोस्त हैं कहाँ तक उचित है ?"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"मम्मी हम लडके लड़कियाँ अगर कोरिडोर में खड़े हो कर किसी बात पर हँस रहे हों आपस में कोई हँसी मजाक भी कर लें तो टीचर्स को लगता है कि इनके बीच जरूर कोई गलत बात ही हो रही है ये तो जब जबकि हम लोग ग्रुप में होते हैं अगर सिर्फ एक लड़का और एक लड़की जो अच्छे दोस्त हैं साथ खड़े बात कर लें या क्लास में साथ बैठें कुछ पढ़ भी रहे हों तो बस शामत आ जाती है उन्हें टीचर्स इतना उल्टा सीधा बोलते हैं कि क्या बताऊँ ?"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"ये तो गलत बात है , दोस्ती तो दोस्ती है और बातचीत तो व्यक्तित्व के विकास की अहम् सीढ़ी है इसे हमेशा गलत नज़रिए से देखना तो बिलकुल उचित नहीं है। अगर टीचर्स को कोई शक है तो उन्हें उन बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखनी चाहिए ,ऐसे सब को ही गलत नज़र से देखना तो ठीक नहीं है।"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">"वैसे भी अगर कोई बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड हैं तो वो तो स्कूल के बाद भी एक दूसरे से मिलते जुलते हैं मोबाइल, इन्टरनेट पर ,कोचिंग के बहाने कोई उन्हें रोक तो नहीं सकता लेकिन ऐसे दो चार लडके लड़कियाँ होते हैं उनके लिए सभी को एक ही डंडे से हाँकना तो गलत है ना ?"</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">वह अभी भी गुस्से में थी कहना होगा कि गुस्से से ज्यादा क्षुब्ध थी एक बहुत गलत और गंभीर इलजाम लगाये जाने से और उसकी सफाई में कुछ कहने ना देने से व्यथित थी। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे हमारे टीचर्स अभी भी सोलहवीं सदी में जी रहे है जब लडके लड़कियों को ऐसे अलग रखा जाता था जैसे बारूद और आग को कहीं पास आ गए तो धमाका हो जायेगा। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैं तो उसकी कल्पना शीलता पर मुग्ध हो गयी। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">हमारी क्लास की एक लड़की है जो इतनी भोली और मन की अच्छी है कि वह सबकी मदद करती है चाहे लडके हों या लड़कियाँ वह किसी एक ग्रुप में नहीं रहती सबके साथ रहती है सभी से हँस के बात करती है तो टीचर्स उसके बारे में उलटी सीधी बातें करते हैं उसे डाँटते है कहते है कि तुम्हारा तो लड़कों के साथ ही मन लगता है इतना बुरा लगता है न सुन कर, अब सबसे बात करने में भी प्रॉब्लम है और किसी एक से बात करने में भी प्रॉब्लम है। ये टीचर्स समझते क्या हैं हम लोगों को ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मुझे याद आया मेरे ही स्कूल में पाँचवी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों की दोस्ती पर कुछ टीचर्स स्टाफ रूम में बैठ कर जिस तरह हँसी मजाक करते थे उनकी दोस्ती को शक की नज़रों से देखते थे कि उन टीचर्स की बुध्धि पर तरस आता था। दस साल के बच्चे सिर्फ बच्चे होते हैं माना कि आज उन्हें जिस तरह का एक्सपोज़र मिल रहा है प्यार, गर्ल फ्रेंड, बॉय फ्रेंड जैसी बातें अनजानी नहीं हैं उनके लिए, लेकिन फिर भी उनके लिए ऐसी बातें करना या सिर्फ दोस्ती के लिए डांटना बहुत ही गलत है। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">सबसे पहले जरूरत है कि टीचर्स और माता पिता लडके और लड़कियों की दोस्ती के प्रति स्वस्थ नजरिया रखें , उन पर विश्वास करें, यदि उनकी दोस्ती में कोई ऐतराज़ जैसी चीज़ नज़र आये तो उन्हें उलटी सीधी बातें कहने के बजाय उनसे प्रेम और शांति से बात करें , उनके आकर्षण का कारण जानने की कोशिश करें। कई बार घर परिवार से मिल रही उपेक्षा या पढाई और माता पिता की आकांक्षा का दबाव उन्हें दोस्ती के भावनात्मक पक्ष से गहरे तक जोड़ देता है। उम्र का भी तकाज़ा होता है लेकिन वह महज़ आकर्षण होता है जो समय के साथ कम भी हो जाता है।लेकिन उसे शक की नज़र से देखना बिलकुल ऐसा है जैसे लूले नौकर की कहानी। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">एक कंजूस सेठ को अपने तिल धूप में सुखाना था उसकी निगरानी के लिए एक नौकर की जरूरत थी,लेकिन नौकर तिल खा न जाये इसलिए उसने खूब सोच विचार करके एक लूले को काम पर रखा। दूसरे दिन जब वह तिल देखने गया तो उसे तिल कुछ कम लगीं। उसने नौकर से पूछा तूने तिल खाई हैं क्या ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">नौकर बोला मैं बिना हाथ के तिल कैसे खा सकता हूँ ?</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मालिक बोला क्यों तू हाथों में पानी लगा कर उसमे तिल चिपका कर भी तो खा सकता है। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">कविता वर्मा </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-44026569135119323732013-10-12T12:11:00.001-07:002013-10-12T12:11:51.268-07:00बच्चों पर ना थोपें डर.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #222222; font-family: arial; font-size: medium;"> अपने बच्चे के साथ पालक शिक्षक मीटिंग में आयीं वे बहुत चिंतित थीं। "मेम मेरा बेटा मैथ्स में बहुत कमजोर है आप ही बताइए उसे कैसे करवाऊं? आप उस पर विशेष रूप से ध्यान दीजियेगा ,उसे रोज़ कुछ एक्स्ट्रा होमवर्क दे दिया करिए। " </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैं ने कुछ असमंजस में उस बच्चे की ओर देखा , जहाँ तक मुझे याद था बच्चा मैथ्स में अच्छा कर रहा था। हाँ थोड़ी झिझक थी लेकिन कमजोर नहीं कहा जा सकता था। मैंने अपने रजिस्टर में उसके नंबर देखे वह ठीक ठाक नंबरों से पास हुआ था। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">माँ की बातें सुनकर वह संकोच से भर गया उसकी आँखों में एक झिझक ,एक भय झलकने लगा। मैंने उससे पूछा -"बीटा मैथ्स में कोई दिक्कत है ? आपको समझ में आता है ? </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">उसने धीरे से सिर हिलाया और बोल हाँ। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने उसकी मम्मी से पूछा आप बताइए ऐसी कोई दिक्कत जो बच्चा आपसे बताता हो , उसे समझने में कोई परेशानी है या कोई और बात। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">वे बोलीं ऐसी तो कोई बात नहीं है ,वो मुझे कुछ बताता भी नहीं है ,जब भी उसे मैथ्स करने को कहती हूँ कहता है मैंने सब काम स्कूल में ही कर लिया। घर पर तो मैथ्स पढना ही नहीं चाहता। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने एक रजिस्टर पलटा उसके ग्रेड्स देखे होम वर्क और कॉपी जमा करने में उसे ए ग्रेड था मतलब उसका काम पूरा रहता है और वह कॉपी भी समय पर जमा करवाता था। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने उन्हें समझाते हुए कहा देखिये आपका बच्चा क्लास में जो पूछा जाये उसका जवाब भी देता है , उसका काम पूरा रहता है कॉपी टाइम पर चेक करवाता है मुझे नहीं लगता कि वह मैथ्स में कमजोर है। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">वे धीरे से बोलीं "मेम दरअसल बात ये है कि इसके पापा को बिलकुल टाइम नहीं मिलता और मेरा मैथ्स बहुत कमजोर है इसलिए मैं इसे पढ़ा नहीं पाती हूँ। ये क्या करता है मुझे नहीं पता लेकिन हाँ जब भी पढने बैठाओ मैथ्स से जी चुराता है इसलिए मुझे बहुत चिंता होती है।" </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">ओह्ह तो ये बात है दरअसल बच्चा नहीं ,बच्चे की माँ मैथ्स में कमजोर है और वह अपना डर बच्चे पर उंडेल रही हैं ,इसलिए बच्चा अब घर पर मैथ्स नहीं करना चाहता। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">ये तो सिर्फ एक बानगी है ऐसे कई माता पिता हैं जो अपने डर बच्चों पर उंडेल कर उसकी ओट ले लेते हैं। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">ये सच है कि बच्चे माता पिता का प्रतिरूप होते है लेकिन इसके अलावा भी वे एक स्वतंत्र व्यक्तित्व होते हैं। उनकी अपनी अभिरुचि होती हैं। जरूरी तो नहीं कि अगर माँ मैथ्स या इंग्लिश में कमजोर रही हो तो उसका बच्चा भी इन विषयों में कमजोर होगा। दरअसल ऐसे माता पिता बच्चों के माध्यम से अपनी कमजोरी पर पर्दा डाल कर खुद को एक ओट देना चाहते हैं। जब वे बच्चे को बार बार वही विषय पढ़ने को कहते हैं जिसमे उन्हें सबसे ज्यादा डर लगता है। अपने डर को उस विषय की कठिनता से जोड़ कर वे बच्चे को उस विषय में अग्रणी देखना चाहते हैं इसमे कोई दो राय नहीं है। लेकिन कई बार इसका उल्टा असर होता है। बच्चा बार बार कठिन विषय है ज्यादा पढो सुनते सुनते परेशान हो जाता है और या तो उस विषय से खुद ही खौफ खाने लगता है या घर में मम्मी पापा के सामने उस विषय को पढ़ने से कतराने लगता है। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">मैंने कई ऐसे बच्चे देखे हैं जो मैथ्स में अच्छे थे लेकिन कहते थे कि मैं मैथ्स में कमजोर हूँ , उनके लिए ट्यूशन लगी है लेकिन फिर भी उनका आत्मविश्वास नहीं बन पाता क्योंकि वे हमेशा अपने माता पिता से सुनते रहे हैं कि फलां विषय बहुत कठिन है ठीक से पढो। ऐसे में विषय में ठीक होते हुए भी बच्चे के मन में एक डर बैठ जाता है। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">अगर आपको किसी विषय से डर लगता है तो उस पर काबू पाने की कोशिश करिए , अगर हो सके तो बच्चे के साथ ,उसकी किताबों की मदद से उस विषय को पढ़ने ,समझने की कोशिश करें लेकिन अपना डर बच्चों पर ना थोपें उन्हें अपनी कमजोरियां और खूबियाँ खुद बनाने और पहचानने दीजिये। </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;">kavita verma </span></div>
</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-31890562583278385852013-05-27T01:47:00.000-07:002013-05-27T01:47:06.168-07:00निर्णय गलत नहीं था ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #222222; font-family: arial; font-size: medium;">निर्णय गलत नहीं था ....</span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span><div>
<span style="font-size: medium;">छोटी बेटी शुरू से नाज़ुक सी ही रही इसलिए उस पर पढाई का बहुत जोर हमने कभी नहीं डाला लेकिन हां शुरू से ही अच्छे नंबरों से पास भी होती ही रही .वैसे भी वो आर्टिस्ट है इसलिए फिजिक्स केमिस्ट्री मैथ्स पढना उसके लिए कभी आसन नहीं रहा . लेकिन इन सब्जेक्ट के साथ आगे सारी लाइनें खुली रहती हैं इसलिए उसे दिलाया . </span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">8 th तक तो कभी कोई परेशानी आयी ही नहीं .9th में सोशल साइंस जैसा बोर सब्जेक्ट पढना उसके लिए बहुत कठिन हो गया .उस समय उसे हौसला दिया जाता जैसे तैसे करके सिर्फ पास हो जाओ बस और दो साल की बात है फिर ये सब्जेक्ट कभी नहीं पढना पड़ेगा .खैर वो दो साल निकल ही गए और सोशल साइंस में भी अच्छे नम्बर आ गए . </span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">11th और 12th में सब्जेक्ट का कोर्स इतना ज्यादा है जितना कभी हमने ग्रेजुएशन में पढ़ा था .वह अपने आप से और सब्जेक्ट से जूझती रही .हमारे यहाँ मार्किंग सिस्टम भी ऐसा है की 11th में हर तरह से बच्चों का आत्मविश्वास तोडा जाता है . अगर उन्हें चार नंबर मिलते हों तो दो ही दिए जाते है स्कूलों में टीचर्स मेनेजमेंट के दवाब में इस कदर झल्लाए रहते हैं कि क्लास में पढ़ाने से ज्यादा लेक्चर पिलाते रहते हैं और उनके लेक्चर से बौखलाए बच्चे घर में माता पिता और कोचिंग के टीचर्स से भी वही लेक्चर सुनते घबरा जाते हैं .</span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">खैर 11th भी जैसे तैसे हो गया लेकिन 12th में उसे इतनी घबराहट थी कि लगा कहीं वो इतना प्रेशर झेलने में नाकामयाब न हो जाए . बहुत सोच विचार कर मैंने अपनी जॉब छोड़ने का निश्चय किया .हालांकि उसकी पढ़ाई करवाना तो मेरे बस का नहीं था इतने सालों में मैं विषय से पूरी तरह से कट चुकी थी लेकिन उसके आत्मबल को बनाये रखने और बढ़ाने के लिए ये जरूरी भी था . </span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">मैंने सोच लिया अब से हर कदम पर बिटिया के साथ रहूंगी . शुरुआत की उसे अपने पास बैठा कर पढ़ाने की .अब तक वह वैसे ही पढ़ती थी जैसे स्कूल और कोचिंग में पढाया जाता था मैंने उसे प्रश्न के हिसाब से पढने को कहा .एक ही उत्तर के लिए कई अलग अलग तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं कई प्रश्न घुमा फिरा कर पूछे जाते है होता ये था कि उसे आता सब था लेकिन वह प्रश्न ही नहीं समझ पाती थी .कुछ दिन वह रोज़ मेरे साथ प्रश्न के हिसाब से उत्तर लिखने की प्रेक्टिस करती रही फिर खुद से करने लगी .</span><span style="font-size: medium;">लेकिन अभी बहुत प्रेक्टिस जरूरी थी .</span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">अभी उसका आत्मविश्वास जो डगमगाया हुआ था उसे थामना बहुत जरूर था . उसकी बड़ी बहन यानि बड़ी बेटी ने उसके लिए क्वेश्चन पेपर बनाये पहले सरल फिर कठिन उन्हें चेक किया और फिर साथ बैठ कर उनके बारे में डिस्कस किया कहाँ क्या और कैसे लिखा जाना चाहिए ये बताया . </span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">उसके पापा से कई बार इसी बात को लेकर लड़ाई हुई की आकर सिर्फ टी वी मत देखा करो उसके साथ बैठो .उसे लगना चाहिए सब उसके साथ हैं .एक बार हम दोनों मूवी देखने जाने के लिए तैयार हो कर घर से निकलने ही वाले थे दूसरे दिन उसका पेपर था तैयारी हो चुकी थी ,कि वह थोड़ी रुआंसी सी दिखी बस जाना कैंसिल और पापा उसके साथ बैठ कर गणित के सवाल हल करने लगे . जब दो चार सवाल उसने पापा को करना सिखा दिया तो उसके चेहरे की चमक लौट आयी . </span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">फिर भी होम एग्जाम में जब उसका रिजल्ट ठीक नहीं आया तो बहुत खीज होती थी उसे दबाना बहुत मुश्किल होता था लेकिन फिर भी उसका हौसला ही बढाया .</span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">मैंने जॉब छोड़ने का निर्णय लिया मन में सिर्फ और सिर्फ उसकी पढ़ाई उसके साथ रहने की चाह थी . कभी कभी मन में एक कसक भी होती थी लेकिन फिर खुद को समझाया अपने बच्चो से बढ़ कर कुछ नहीं है .</span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">परीक्षा की तैयारियों के बीच बीच में वह आकर मेरे पास बैठ जाती थोड़ी देर लडिया लेती गपिया लेती और फिर नए जोश से जुट जाती .कभी कभी जब हताश होती तो मैं उसे खींच लाती चलो छोडो हम टी वी देखते है .थोड़ी देर के लिए उसका मन पढ़ाई से हट जाता और फिर नयी उर्जा से पढना शुरू करती . </span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">ऐसे समय में बड़ी बिटिया को अलग से यही कहती उसे बूस्ट अप करो उसका मोरल डाउन नहीं होना चाहिए अगर कुछ नहीं आता है तो धीरे से उसे बताओ चिढो मत उसे ये एहसास कभी मत कराओ की उसे नहीं आता .हालांकि वह भी कोई बहुत बड़ी नहीं है लेकिन उसने भी वक्त की नजाकत को समझ कर उसे बहुत सपोर्ट किया जो बड़े बड़े अनुभवी भी नहीं कर पाते . </span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">एग्जाम टाइम में कभी उसे पढने के लिए जोर नहीं डाला बल्कि यही कहा की तुम्हे सब आता है तुम कर लोगी तुमने सब कर लिया है बस अब मस्त रहो .</span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">आज सात महीनों की धीर ,लगन ,उसका साथ, उसका हौसला बढाया जाना सब सफल हो गया आज 12th का रिजल्ट आ गया बिटिया अच्छे नंबरों से पास हो गयी .</span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">ये सब मैं खुद की वाहवाही के लिए नहीं लिख रह हूँ बल्कि ये एक छोटी सी कोशिश है एग्जाम का प्रेशर झेल रहे बच्चों के माता पिता को एक गाइड लाइन देने कि हमारी छोटी छोटी कोशिशें उन्हें मंजिल की राह में आने वाली मुश्किलों को फूल में बदल देती है .आज जिस तरह बच्चे आत्मघाती कदम उठा रहे है जिसके बाद सारे रास्ते ही ख़त्म हो जाते है उनसे उन्हें बचाने की .अपने बच्चों पर विशवास करिए उनका हौसला बढाइये मंजिल तो वे खुद पा लेंगे . </span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;">कविता वर्मा </span></div>
</div>
</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-11043171408572230562013-05-10T12:43:00.004-07:002013-05-10T12:43:53.227-07:00यही तो चाहिए . ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">उस लड़की को पढ़ाने से पहले ही उसके बारे में जानकारी मिल गयी थी मुझे .ग्यारह </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">साल की कक्षा छह </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;">की वह मासूम सी लड़की का मन पढ़ाई लिखाई में बिलकुल नहीं लगता था . हाँ क्लास के बाहर वह हमेशा चहकती हुई दिखती थी . </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
क्लास में मेरा पहला दिन था वह पहली बेंच पर बैठी थी परिचय बातचीत के दौरान वह सहज ही रही . अगले दिन से पढ़ाई शुरू हुई .मैंने देखा उसका मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता था .जब भी मैं कुछ समझाती उसकी आँखे यहाँ वहाँ घूमती रहती वह कभी ध्यान लगा ही नहीं पाती थी . समझाते हुए कई बार उसका नाम लेकर मैं पूछती बेटा समझ आ रहा है वह असमंजस की स्थिति में सर हिला देती . लिखने के समय भी वह ऐसे ही बैठी रहती .एक दिन मैंने उससे कहा बेटा ऐसे काम नहीं चलेगा तुम्हे लिखना तो पड़ेगा न ? मैं किसी की कॉपी नहीं दूँगी काम पूरा करने के लिए . फिर मैं ने क्लास में सबसे कहा की मुझसे पूछे बिना गणित की कॉपी कोई भी किसी को नक़ल करने के लिए नहीं देगा . अगर किसी ने कॉपी दी तो फिर वो कॉपी उसे वापस नहीं मिलेगी उसे नयी कॉपी बनानी पड़ेगी . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
इसका असर ये हुआ की उसे ये समझ आ गया की अब उसे ही अपना काम करना है . मैंने उसे समझाया की क्लास में जो समझाया जा रहा है उसे ध्यान से सुने नहीं समझ आया तो मुझसे पूछे लेकिन काम पूरा करना ही है . होमवर्क भी मैं वही देती थी जो क्लास में समझा दिया गया हो . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
धीरे धीरे उसने ध्यान देना और लिखना शुरू किया .वह एक ऐसा टॉपिक था जो पिछले ३ सालों से हर साल पढ़ाया जा रहा था .उसमे भी उसके कांसेप्ट क्लीयर नहीं थे . पिछली क्लासेस में उसे हर बार किसी की कॉपी दिलवा दी जाती थी और वह कॉपी पूरी कर लेती थी . टीचर्स कॉपी चेक कर साइन कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती थी . हमारे स्कूल में फोटोकॉपी देने की बहुत बुरी प्रथा थी . वैसे ये शुरू हुई थी सिर्फ बीमार बच्चों की मदद के लिए लेकिन कोई कण्ट्रोल न होने से टीचर्स जिसका भी काम पूरा नहीं है उसे किसी अच्छे बच्चे की कॉपी से फोटो कॉपी करवा कर दे देती थीं . मैं इस फोटो कॉपी प्रथा के सख्त खिलाफ थी और बच्चे ये बात जानते थे इसलिए थोड़ी बहुत आनाकानी के बाद अपना काम पूरा करना सीख ही जाते थे . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
अब धीरे धीरे उसने सुनना और लिखना शुरू किया .जब पहली बार वह होमवर्क करके लाई मैंने उसे बहुत शाबाशी दी उसकी आँखे चमक उठीं . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
पहला चेप्टर ख़त्म हुआ अब अगला चेप्टर भी कठिन नहीं था वह भी पहले पढाया जा चुका था लेकिन वही की उसने तो सिर्फ कॉपी पूरी की थी . पांचवी तक किसी बच्चे को फेल किया ही नहीं जा सकता इसलिए वह पास होते हुए कक्षा छह तक आ गयी लेकिन अब वह खुद ही उलझन में रहती थी . कभी आँख मिला कर बात नहीं करती थी . पूरे समय एक अजीब सा असमंजस उसकी आँखों में रहता था . वह भी जानती थी की ये पहले पढाया जा चुका है और सभी बच्चे अपने आप कर रहे है इसलिए पूछने में हिचकिचाती थी . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
उस दिन उसके पास खड़े होकर मैंने देखा कि उसे साधारण गुणा भाग करने में भी परेशानी हो रही है .मैंने उसकी कॉपी में एक दो सवाल समझाये और उससे कहा मैं तुम्हे तीन दिन देती हूँ उसमे तुम्हे ये सीखना है घर में रोज़ पच्चीस सवाल करना है तुम ये कर लो बाकी मुझ पर छोड़ दो . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
वह बोली मेम मैं मैथ्स में बहुत कमजोर हूँ .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
मैंने कहा किसने कहा मुझे तो ऐसा नहीं लगता बस तुमने प्रेक्टिस थोड़ी कम की है उसे हम अब करेंगे .तुम रोज़ घर में प्रेक्टिस करो मैं चेक करूंगी फिर देखना कैसे तुम मेथ्स में बढ़िया हो जाओगी . तुम भी चाहती हो न कि कोई तुम्हे कमजोर न समझे ? </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
उसकी आँखों में चमक आ गयी . एक विश्वास चेहरे पर फ़ैल गया उसने डबडबाती आँखों से सर हिल हर हाँ कहा .अगले दिन उसने बताया की मैंने मम्मी से कहा उन्होंने मुझे पच्चीस सवाल करने को दिए थे मैंने सब सही किये . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
मैंने उसकी पीठ थपथपा कर कहा बस बहुत जल्दी तुम क्लास की अच्छी स्टूडेंट बन जाओगी . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
जल्दी ही वह क्लास में ध्यान देने लगी सुन कर समझने और अपने आप सवाल हल करने लगी . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
किसी कारणवश मुझे जॉब छोड़नी पड़ी . आज वही लड़की फेस बुक पर मिली और बोली मेम आपकी वजह से मैं मेथ्स में अच्छा करने लगी हूँ पहली बार मुझे बहुत अच्छे नंबर मिले हैं और मैं पास हुई हूँ .सच कहूँ मुझे इतनी ख़ुशी हुई की बता नहीं सकती एक टीचर को यही तो चाहिए . </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<br /></div>
</div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-55580114037722078392013-03-03T23:58:00.001-08:002013-03-03T23:58:36.932-08:00मुल्ला नसीरुद्दीन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुल्ला रास्ते पर जा रहे थे तभी किसी ने पीछे से उन्हें एक चपत लगाईं मुल्ला उसे लेकर अदालत में गये. लेकिन जज उस आदमी का दोस्त निकला उसने उसे सज़ा तो सुनाई लेकिन क्या उसने सज़ा पाई? मुल्ला ने कैसे इसका प्रतिकार किया सुनिए कहानी मुल्ला नसीरुद्दीन में ....<br />
<br />
<a href="http://www.youtube.com/watch?v=4i9wb_ibT-Q" target="_blank">http://www.youtube.com/watch?v=4i9wb_ibT-Q</a></div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-80308692219549448702013-02-27T02:03:00.001-08:002013-02-27T02:03:18.065-08:00कहानी शेर और चूहा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शेर जंगल में आराम कर रहा था की चूहा उसपर चढ़ गया और शरारत करने लगा, शेर की आँख खुल गयी और उसने चूहे को पकड़ लिया ..चूहे ने फिर क्या किया कैसे अपनी जान बचाई सुनिए कहानी शेर और चूहा <br />
<br />
<a href="https://www.youtube.com/watch?v=VAZNI1bj6fQ">https://www.youtube.com/watch?v=VAZNI1bj6fQ</a></div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-18703339459733885552013-02-23T08:43:00.000-08:002013-02-23T08:43:01.986-08:00कहानी अपना काम आप करो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
चिड़िया के बच्चे डरे हुए थे. वे अभी उड़ना नहीं जानते थे लेकिन किसान तो खेत की फसल कटवाना चाहता था ,अब ऐसे में वे कहा जाते? जब चिड़िया घर लौटी वह निश्चिन्त थी आखिर क्यों??<br />
<br />
<a href="https://www.youtube.com/watch?v=VWOkaNkUm-g">https://www.youtube.com/watch?v=VWOkaNkUm-g</a></div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-52891138893403829992013-02-13T02:47:00.000-08:002013-02-13T02:47:02.798-08:00सुनो कहानी मूर्तिकार की कमी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वह बहुत कुशल मूर्तिकार था। अपनी कला का इस्तेमाल करके उसने खुद को बचा तो लिया लेकिन फिर क्या हुआ कि वह पकड़ा गया ...जानने के लिए सुनिए कहानी मूर्तिकार की कमी<br />
<br />
<a href="https://www.youtube.com/watch?v=thPJChUxIko">https://www.youtube.com/watch?v=thPJChUxIko</a></div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-18288693068676098402013-01-31T05:01:00.001-08:002013-01-31T05:01:29.628-08:00कहानी खरगोश की चतुराई <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कहानियाँ बच्चों के विकास में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करती हैं।आजके व्यस्त समय में माता पिता के पास इतना समय नहीं है की वे बच्चों को कहानियाँ सुनाये।परिवार एकल हो गए दादा दादी के पास बैठने का बच्चों के पास समय नहीं है। टी वी, कंप्यूटर,पढ़ाई बच्चों को इतनी मोहलत नहीं देते की वे कहानियाँ सुन सकें। बच्चों के लिए एक छोटा सा प्रयास किया है जिससे उनके बचपन को इस अनद से भी भरा जा सके।<br />
आशा है आपको ये प्रयास पसंद आएगा और आप अपने और अपने आस पास के बच्चों तक इसे पहुचाएंगे। <a href="https://www.youtube.com/watch?v=whYRjbPfFnM">https://www.youtube.com/watch?v=whYRjbPfFnM</a><br />
<br />
<br /></div>
kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-16106886718010918962012-09-16T10:39:00.000-07:002012-09-16T10:39:12.695-07:00आज में बहुत खुश हूँ..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">आज में बहुत खुश हूँ...बात ही कुछ ऐसी है...अब आप कह सकते हैं की इसमें कौन बड़ी बात है ये तो होता ही रहता है..लेकिन मेरे लिए बड़ी बात है तो है ..में खुश हूँ तो हूँ संतुष्ट हूँ तो हूँ.</span><br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">चलिए आपको भी बता ही देती हूँ मेरी ख़ुशी का राज़.मेरी क्लास में एक लड़की है.नाम....चलिए कहें नेह ..जब मैंने इस क्लास में पढ़ाना शुरू किया तो देखा ये लड़की चुपचाप सी बैठी रहती है कुछ समझाओ तब भी उसके चेहरे और आँखों में कुछ ना समझने के से भाव रहते हैं.दो चार बार उसके पास खड़े हो कर उसे सवाल हल करते देखा तो पाया की उसे वाकई कुछ समझ नहीं आ रहा है.कुछ सवालों को साथ में हल करवाया तो देखा की उसे तो चार ओर सात जोड़ने में भी समय लगता है.सच कहूँ एक हताशा सी छा गयी लगा बाबा रे कितनी मेहनत करना पड़ेगी इसके साथ.अब ३६ बच्चों की क्लास में एक के साथ इतना समय बिताना संभव भी तो नहीं होता. लेकिन अच्छा नहीं लगा सोचा उसे थोडा अतिरिक्त समय दूँगी और कम से कम एवरेज तक लाने की कोशिश तो कर ही सकती हूँ. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">काम कठिन था.उसकी पिछले साल वाली मेम से उसके बारे में पूछा तो जवाब मिला की उसे कुछ नहीं आता मैंने उसे सारे साल बोर्ड के सामने खड़ा करके समझाया लेकिन उसने कुछ नहीं किया.लेकिन इससे ये तो समझ आया की क्लास में उसके इतने चुप रहने का कारण क्या है. शायद कुछ नहीं आता इस वजह से सबके आकर्षण का केंद्र बनने का डर. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">एक दिन कुछ सवाल घर से हल करके लाने को कहे . और उससे खास तौर पर कहा की बेटा बुक में इस पेज पर इनके उदहारण हैं यदि कोई परेशानी हो तो उन उदाहरणों को पढना. दूसरे दिन जब उसने कॉपी दिखाई तो आश्चर्य हुआ की उसने सभी सवाल सही हल किये थे.मैंने उसे क्लास में सबके सामने खूब शाबाशी दी .उसके लिए तालियाँ बजवाईं.उस दिन २ महिने में पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कान दिखाई दी.उस मुस्कान ने उसका ही नहीं मेरा भी आत्मबल बढा दिया..</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">एक दो दिन बाद ही किसी बात पर मैंने बच्चों को कहानी सुनाई .पाणिनि की कहानी करत करत अभ्यास के ...रसरी आवत जात है सिल पर होत निशान..मैंने देखा वह बहुत ध्यान से कहानी सुन रही थी..कहानी के आखिर में एक पल को मैंने उसकी आँखों में देखा ओर कहा की किसी के लिए भी कोई काम मुश्किल नहीं है.उसने आँखों ही आँखों में उस बात को स्वीकारने का इशारा किया..और फिर में सभी बच्चों की और मुखातिब हो गयी. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">अब होने ये लगा की की जब में क्लास में पूछती की किसे ये समझ नहीं आया तो वह धीरे से हाथ उठा देती..और वो भी बिना इधर उधर देखे. पूछने का उसका संकोच ख़त्म होने लगा था. <span style="line-height: 1.8;"> जब बच्चे इस बात के लिए हाथ उठते हैं की उन्हें समझ नहीं आता तो उन्हें वैरी गुड जरूर कहती हूँ साथ ही ये भी की पूछना बहुत अच्छी आदत है.</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">एक दिन वह मुझे कोरिडोर में मिली उससे पूछा बेटा पढाई कैसी चल रही है. तुम अच्छी कोशिश कर रही हो..बस ऐसे ही प्रेक्टिस करती रहो इस बार ऐसा रिजल्ट लायेंगे की सब देखते रह जायेंगे..क्यों ठीक है ना??और वह मुस्कुरा दी.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">आज मैंने एक टेस्ट लिया और उस टेस्ट में नेह पास हो गयी जी सिर्फ पास ही नहीं हुई बहुत अच्छे नंबरों से पास हो गयी.आप मेरी ख़ुशी का अंदाज़ा नहीं लगा सकते..उस लड़की ने कर दिखाया..और शायद पहली बार वह मेथ्स में पास हुई है ..बस मुझे इंतज़ार है कल का जब में उसे उसकी कॉपी दूँगी ओर उसकी आँखों में फिर वो मुस्कान देखूंगी..</div><br class="Apple-interchange-newline" /></div>kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-38868071343983390152012-08-23T08:11:00.000-07:002012-08-23T08:11:25.766-07:00बच्चे और कहानियाँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">आज बदलते समय के साथ बच्चों कि चाह उनकी आदतें और शौक भी काफी बदल गए हैं.उनके मनोरंजन के साधन अब किस्से कहानियां नहीं रहे ..गली मोहल्ले में खेले जाने वाले खेलों कि जगह सर्व सुविधा युक्त स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स हो गए हैं.उनके बातों के विषय भी अब कहीं ज्यादा गंभीर तो कहीं ज्यादा परिपक्व हुए हैं.अब उन्हें नए नए गजेट्स के बारे में बतियाने में उसकी जानकारी हासिल करने में ज्यादा मज़ा आता है. जब आज के बच्चों को देखते हैं तो लगता है कि ये कहीं ज्यादा होशयार हैं.हमारे समय कि बचपन कि बातें अब आउट डेटेड लगती हैं.लेकिन क्या सच में ऐसा है??क्या सच में बच्चे अब वैसे खेल नहीं खेलना चाहते ?कहानियां नहीं सुनना चाहते?</span><br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">अभी एक दिन जनरल नोलेज कि क्लास में हिंदी के नामी लेखकों कि जानकारी देते हुए मुंशी प्रेमचंद का नाम आया,तो उनकी कहानी पञ्च परमेश्वर कि बात निकल पड़ी.मैंने पूछा किस किसने ये कहानी पढ़ी है?कक्षा में सन्नाटा पसर गया.सातवीं में पढ़ने वाले बच्चों ने पञ्च परमेश्वर कहानी के बारे में सुना तक नहीं था.मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ.आजकल के प्राइवेट पब्लिकेशन अपनी पुस्तकों में नयापन भरने के लिए नामी पुराने साहित्यकारों कि कविता कहानियों को अलग करके नईं सामग्री से लुभा रहे हैं.इसलिए हिंदी साहित्य जगत के लेखकों को बच्चे जानते ही नहीं हैं उनकी अजर अमर रचनाएँ ओर उनसे मिलने वाली सीख गुम होती जा रही है.मैंने जब आश्चर्य प्रकट किया तो बच्चे कहानी सुनाने कि जिद्द करने लगे.अब कहानी को समझ कर दिमाग में उतार लेना और बात है लेकिन जब बच्चों को कहानी सुनाना है तब उसे पूरा सही शब्दों ओर घटनाओं के साथ सुनना चाहिए.इसलिए मैंने उनसे कहा कि अगली क्लास में उन्हें कहानी सुनाउंगी .</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">उस दिन सारी हिंदी टीचर्स से पूछा किसीके पास पञ्च परमेश्वर कहानी है क्या?लेकिन अफ़सोस किसी ने कहा घर पर है किसी ने कहा लायब्रेरी में देखो .मतलब छटवीं से १० वीं तक किसी भी हिंदी पाठ्य पुस्तक में पञ्च परमेश्वर कहानी नहीं थी.एक सप्ताह इसी तलाश में बीत गया इस बीच नेट पर आने का समय भी नहीं मिला .अगली क्लास में जाते ही बच्चे शोर मचाने लगे मैडम कहानी सुनाइए .सच कहूँ मुझे बड़ी शर्म आयी कि अपना वादा पूरा नहीं कर पाई.लेकिन अगली बार जरूर सुनाउंगी ये वादा किया. तसल्ली भी हुई कि बच्चे सच में कहानी सुनने को उत्सुक हैं. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><br />
</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"> खैर घर आ कर नेट कि शरण ली गयी ओर कहानी पढ़ी गयी.जाने कितने साल बाद इसे दोबारा पढ़ा था.मुझे भी याद ही नहीं था कि कहानी इतनी लम्बी है.लेकिन पढ़ते पढ़ते ख्याल आया कि क्या बच्चे इतनी लम्बी कहानी सुनेंगे? आजकल के फास्ट ट्रैक बच्चे स्लो मूवी ,सीरियल बातें स्लो कम्प्यूटर किसी भी चीज़ का धीमे होना सहन नहीं कर सकते ये बच्चे इतने धीरे धीरे भावनाओं के साथ आगे बढ़ती इतनी लम्बी कहानी कैसे सुनेंगे?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">खैर वादा किया था सो निभाना तो था.अगली क्लास में पहुँचते ही बच्चों ने फिर याद दिलाया मैडम कहानी?सुखद आश्चर्य था जिसने हिम्मत दी कि शायद ये बोर नहीं होंगे .</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">कहानी सुनाते हुए में ध्यान से सबके चेहरे पढ़ती रही कि कहीं कोई बोर तो नहीं हो रहा है?लेकिन जिस तन्मयता से उन्होंने पूरे आधे घंटे वह कहानी सुनी सच में हैरानी हुई.लगा समय भले आधुनिक हो गया है लेकिन बच्चे आखिर बच्चे ही हैं.उनके मन को कहानियां आज भी भातीं हैं शायद हम ही समय का बहाना बना कर उन्हें सुनाने से दूर भागते हैं. </div><br class="Apple-interchange-newline" /></div>kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-60094560517555285652012-07-22T09:31:00.000-07:002012-07-22T09:31:44.684-07:00क्या मार्क्स इतने जरूरी हैं???<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">स्कूल खुलने के एक दिन पहले मेरी बेटी एक अजीब सी बैचेनी से भर गयी.बार बार कहती कल स्कूल जाना है लेकिन स्वर में उत्साह ना था बल्कि एक तनाव एक बैचेनी.ऐसा पहले कभी ना हुआ था इतने साल की स्कूलिंग में ये पहला मौका था जब की स्कूल को लेकर उसमे कोई तनाव था.मैंने उससे बात की थोडा उसका ध्यान हटाने की कोशिश भी की लेकिन स्कूल तो जाना ही था. </span><br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br />
</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">दूसरे दिन में बैचेनी से उसके स्कूल से लौटने का इंतजार कर रही थी. जैसे ही वह आयी मैंने पूछा कैसा रहा पहला दिन.सुनते ही वह चिढ गयी मम्मी अभी स्कूल की कोई बात नहीं. खैर उस समय उसका ध्यान दूसरी बातों में लगाया ताकि वह रिलेक्स हो जाये. आखिर रात में मैंने पूछ ही लिया हुआ क्या??मन में भरा गुबार जैसे निकलने को बेताब था.बोली मम्मी स्कूल वाले भी सारे समय लेक्चर ही सुनाते रहते हैं. अब इस साल हमारे स्कूल की एक लड़की मेरिट लिस्ट में टॉप पर आ गयी तो सारे पीरियड में सारे टीचर्स <span style="line-height: 1.8;">यही कहते रहे की तुम्हारे सीनियर्स ने ऐसा किया इतने मार्क्स लाये इसलिए तुम्हे भी इतनी मेहनत करना है </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;"><br />
</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">स्कूल का पहला दिन १० वीं ओर १२ वीं के शानदार रिजल्ट की गर्वित उद्घोषणा के साथ ही आने वाले सत्र में बच्चों को बहुत मेहनत करके आगे बढ़ने की सलाह सीख दे डाली गयी.उद्देश्य निःसंदेह उन्हें अच्छे मार्क्स के साथ पास होने के लिए प्रेरित करना था लेकिन जब प्रेरणा देने का काम लेक्चर बन जाये ओर बच्चों पर दबाव डालने लगे तब एक गंभीर विषय हो जाता है. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">उस दिन तो उसे जैसे तैसे समझाया कि ऐसा तुम्हे ओर अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करने के लिए कहा गया. एक आदर्श सामने हो तो पता होता है कि कितनी कैसी मेहनत करके कहाँ पहुंचना है. लेकिन ये सिलसिला उसी दिन ख़त्म नहीं हुआ. पिछले लगभग एक महिने से लगभग रोज़ कि ही ये कहानी हो गयी. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">उसके प्रश्न भी उचित ही है -उसका कहना है कि मम्मी अगर हमें अच्छे मार्क्स लाना है तो उसके लिए हमें पढ़ाना चाहिए ना कि क्लास में सिर्फ लेक्चर देना चाहिए.जिसमे अभी जब कि फर्मेतिव असेसमेंट सर पर है टीचर्स रोज़ ही ये सुनाते हैं कि में ऐसे मार्क्स नहीं दूंगा वैसे रियायत नहीं दूंगा वगैरह वगैरह. रोज़ रोज़ एक जैसा लेक्चर आखिर कोई कैसे सुन सकता है वो भी रोज़ दिन में ५ विषयों के ५ टीचर्स से ५ बार. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;"><br />
</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">नतीजा ये है कि सारा दिन पढ़ने के बाद भी उसका तनाव एक्सट्रीम पर होता है इस डर के साथ कि मुझे कुछ याद ही नहीं है में एक्जाम में क्या करूंगी.जब उसे समझाया जाता है कि बेटा कोई चीज़ ऐसे भूली नहीं जाती एक्साम में सब याद आ जाता है,</span><span style="line-height: 1.8;"> </span><span style="line-height: 1.8;">तुम सिर्फ अपनी पढाई करो मार्क्स कि चिंता छोड़ दो वो जैसे भी आयें बड़ी बात नहीं</span><span style="line-height: 1.8;"> </span><span style="line-height: 1.8;">है</span><span style="line-height: 1.8;"> तो वह चिढ जाती है.</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">नतीजा अब वह स्कूल ना जाने के बहाने तलाशती है लेकिन उपस्तिथि कम होने का डर भी सर पर सवार रहता है तो कई बार ना चाहते हुए भी जाना होता है. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">इन ३० दिनों में जिस तरह का तनाव उसमे देखने को मिल रहा है वह पिछले १२ सालों में कभी नहीं देखा वह भी जब जब कि वह स्कूल कि हर बात मुझे बताती है जिससे कम से कम उसका मन हल्का हो जाता है. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;"><span style="color: red;">लेकिन में सोचती हूँ उन बच्चों का क्या होता होगा जिनके माता पिता भी अच्छे मार्क्स को लेकर उनके पीछे पड़े रहते हैं?वो बच्चे तो बेचारे घर में ऐसी बातें बताते भी नहीं होंगे सारा दिन स्कूल में ओर फिर घर में भी रोज़ वही लेक्चर सुन सुन कर उनका क्या हाल होता होगा? </span></span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">अभी कुछ दिनों पहले दस्तक क्राइम पेट्रोल पर ऐसा ही एक केस देखने को मिला था जिसमे घर ओर स्कूल के दबाव से परेशान हो कर १०वी की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली थी. बच्चों में तनाव इस कदर बढ़ गया है ओर इसे बांटने का उनके पास कोई जरिया भी नहीं है.</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">फिर जो बच्चे IIT या अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहें है उनका तो भगवान ही मालिक है. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">एक तरफ हम शिक्षा पद्धति में बदलाव कि बात करते हैं ताकि बच्चे मार्क्स कि आपाधापी से निकल सकें .दूसरी ओर आसान बनाये गए सिस्टम को फिर मार्क्स के साथ जोड़ कर उनका तनाव पहले से भी अधिक बढा दिया गया है. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">पहले जहाँ साल में सिर्फ ३ मेन एक्साम्स होते थे अब सारा साल ही F A या S A चलते रहते हैं. जिससे बच्चे जूझते रहते हैं .</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="color: red;">स्कूल मेरिट लिस्ट से अपनी दुकानदारी चलाते हैं अपने स्टार बच्चों को अपने विज्ञापनों में नाम फोटो ओर परसेंट के साथ प्रकाशित करके <span style="line-height: 1.8;">अगले साल बेहतर परीक्षा परिणाम के वादे के साथ ज्यादा नए एडमिशन पाते हैं ओर अगली बेच के बच्चों के लिए एक नयी चुनौती रख देते हैं जिसके लिए लगातार दबाव बनाते हैं ताकि अगले साल के विज्ञापन के लिए उन्हें नए स्टार मिल सकें ओर उनकी दुकानदारी चलती रहे. </span></span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">होना तो ये चाहिए कि अब स्कूल्स के विज्ञापनों में मेरिट लिस्ट के नाम फोटो ओर परसेंट के प्रकाशन पर रोक लगनी चाहिए वैसे भी बच्चे का परफोर्मेंस उसका निजी है स्कूल ने उसे सिर्फ गाइड किया है जिसकी पूरी कीमत वसूली है. उसमे से भी ज्यादातर बच्चे कोचिंग में अपनी पढाई पूरी करते हैं.कई स्कूल्स के पास तो पढ़ने के लिए ढंग के टीचर्स भी नहीं है फिर वे कैसे बच्चे के रिजल्ट पर अपना दावा पेश कर सकते हैं?</span></div></div>kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-87775589370483734232012-07-07T11:16:00.002-07:002012-07-07T11:16:52.709-07:00बच्चों में पढने कि आदत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टी वी कम्पूटर इंटरनेट के ज़माने में पढ़ने की आदत बहुत कम होती जा रही है. हालाँकि बड़े बड़े पुस्तक मेले हर साल लगते हैं ओर उनमे लाखों करोड़ों का व्यापार भी होता है लेकिन इतनी पुस्तकें खरीदने वाले भी पढ़ते कितनी हैं ये एक खोज का विषय है.और जो लोग पढ़ते भी हैं उनमे से कितने लोग हिंदी साहित्य पढ़ते हैं ये तो ओर भी ज्यादा बड़ा प्रश्न है. यही बात बच्चों पर भी लागू होती है. इंग्लिश मीडियम पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अपने लायब्रेरी पीरियड में पढ़ते जरूर हैं लेकिन उनकी इंग्लिश सुधारने के लिए उन्हें इंग्लिश साहित्य पढ़ने को प्रेरित किया जाता है.हिंदी साहित्य या तो पुस्तकालयों में उपलब्ध ही नहीं होता या इस स्तर का ही नहीं होता की वह उनमे रूचि जगा सके. </span><span style="background-color: red; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"></span><br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="background-color: white;"><br />
</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="background-color: white;">कई बार स्कूल में या घर पर भी बच्चों से बात करते हुए उन्हें कई बातों का मतलब समझाने में बहुत दिक्कत होती है कारण की कुछ शब्द जो हमें खडी बोली में पता हैं या जिनके हिंदी भाषा में शब्द बहुत क्लिष्ट हैं ओर इंग्लिश में उनके लिए सही शब्द क्या हैं वो तुरंत दिमाग में नहीं आते. ऐसे ही कई जगहों के नाम या रीति रिवाज परंपरा के बारे में बात करने पर ये बच्चे ऐसे ब्लैंक लुक देते हैं की अफ़सोस होता है. कारण ?? कारण ये है की इन्होने कभी इसके बारे में जाना ही नहीं. जब में ऐसा सोचती हूँ कि आखिर सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में ये बच्चे इतने बेखबर क्यों हैं? तो जो कारण समझ में आता है वो है इनकी पढ़ने कि आदत. जी इतना तो कह ही सकती हूँ कि बच्चों को पढ़ने कि आदत तो है या शायद टेक्स्ट बुक्स कि उबाऊ दुनिया से अलग ये कुछ ओर भी पढना चाहते हैं लेकिन जो साहित्य इनके लिए उपलब्ध है वह है विदेशी साहित्य.अब ये बहस का विषय हो सकता है कि देशी ओर विदेशी साहित्य क्या है साहित्य तो आखिर साहित्य है. जी में इस बात से सहमत हूँ कि साहित्य तो आखिर साहित्य है लेकिन इस साहित्य में घटनाएँ, परिवेश,तीज त्यौहार रीति रिवाज सब विदेशी हैं बच्चे उन्हें बड़े चाव से पढ़ते हैं और शायद इसीलिए उन्हें हेल्लोविन ,क्रिसमस, ईस्टर,तो पता है लेकिन वट सावित्री,आंवला नवमी,गंगा दशहरा महालक्ष्मी व्रत जैसे कई कई त्योहारों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">जी हाँ हमने इनके बारे में अपने परिवार परिवेश से जाना लेकिन इसके अलावा भी कई संस्कृतियों के बारे में जाना अपनी भाषा ,परिवेश का साहित्य पढ़ कर.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">आज अगर बच्चों को बताया जाये कि देश के किसी हिस्से में लड़कियों कि स्थिति बहुत ख़राब है तो वो शायद विश्वास ही नहीं करें क्योंकि ये स्थिति उन्होंने देखी नहीं ओर पढ़ी भी नहीं.उन्होंने तो पढ़ा है कि लड़कियां १२-१३ साल कि होते ही अपने दोस्त बनाने लगती हैं उनके जीवन के सुख दुःख इन लड़कों से जुड़े होते हैं.उनके माता पिता उन्हें कुछ कहते ही नहीं है.वे जानते ही नहीं हैं कि हमारे देश में लड़कियों को घर से बाहर निकलने के लिए कितने लोगों कि इजाजत लेनी होती हैं या कम उम्र में शादी होना माँ बनना या एक बेमेल शादी को सारी उम्र निभाना कितना मुश्किल होता है. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">वे ये तो जानते हैं कि लोग बुरे होते हैं लेकिन कितने बुरे हो सकते हैं या हमारे यहाँ लोगों कि मानसिकता महिलाओं बच्चों को लेकर क्या होती है उसका उन्हें अंदाज़ा ही नहीं है, वे तो रापंजल, सिन्द्रेल्ला, स्नो व्हाइट में ही खोये हुए हैं जहाँ हर लड़की को बचाने एक राजकुमार आ जाता है.उन्हें क्या पता कि जाने कितनी ही लड़कियां कभी बच पाने के सपने देखे बिना ही दम तोड़ देती हैं. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">कितने ही लडके अपने माता पिता के सपनों का बोझ ढोते असमंजस में जिंदगी गुजार देते हैंऔर कितने ही माता पिता बच्चों कि बेरुखी के चलते बुढ़ापे के अकेलेपन से जूझते रहते हैं. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">खैर गलती बच्चों कि नहीं है.वे तो पढ़ते है और जो भी उन्हें मिले पढ़ते हैं या जो उन्हें पढने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है वो पढ़ते हैं लेकिन हम ही उनकी हिंदी साहित्य में रूचि जाग्रत नहीं कर पा रहे हैं .उन्हें अपने परिवेश को जानने समझने के लिए उचित सामग्री प्रदान नहीं करवा पा रहे हैं.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">मेरा मानना है कि बच्चों के लिए अच्छी हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओँ के सामग्री उपलब्ध करवाना चाहिए जिससे वे अपने परिवेश से जुड़ सकें. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br />
</div><br class="Apple-interchange-newline" /></div>kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-34010958547030724512012-07-04T05:01:00.001-07:002012-07-04T05:01:53.528-07:00ये भी तो जरूरी है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">वैसे तो अभी तक स्कूल कि छुट्टियाँ चल रहीं थीं लेकिन स्कूल दिमाग से निकलता थोड़े ही है.बल्कि छुट्टियों में और ज्यादा समय मिलता है स्कूल कि बातें सोचने उन पर नए सिरे से विचार करने का. रोज़ कि पढाई के साथ एक अतिरिक्त जिम्मेदारी टीचर्स पर होती है और वह है किसी टीचर के अनुपस्थित होने पर उसकी क्लास लेना.वैसे तो इस पीरियड में पढाई ही होनी होती है लेकिन बच्चे सच पढ़ना नहीं चाहते.बड़ी मुश्किल से तो उन्हें कोई फ्री पीरियड मिलता है. तो जैसे ही क्लास में पहुँचो पहली ख़ुशी उनके चेहरे पर दिखती है कि चलो आज पढना नहीं है.लेकिन जल्दी ही ये ख़ुशी काफूर हो जाती है जब उन्हें पता चलता है कि ये फ्री पीरियड फ्री नहीं है बल्कि इसमें भी पढना ही है.और सच बताऊ मुझे इसमें बहुत तकलीफ होती है.बच्चों को इस फ्री पीरियड में अपने मन का काम करने की ,अपने दोस्तों से बात करने कि आज़ादी होना ही चाहिए.आखिर ये भी तो सीखने का एक तरीका हो सकता है.अपने दोस्तों से बात करना या उनके साथ बैठ कर अपनी पढाई कि मुश्किलों को हल करना या अपना अधूरा काम पूरा करना या फील्ड में जाना खेलना वगैरह.लेकिन स्कूल में खेलने और लायब्रेरी के पीरियड होते हैं इसलिए और एक्स्ट्रा पीरियड देना संभव नहीं होता. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br />
</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">वैसे इन पीरियड में में बच्चों से बात करना चाहती हूँ.ये टीचिंग लर्निंग का सबसे अच्छा तरीका है.लेकिन अफ़सोस बच्चे इसमें आसानी से शामिल नहीं होते. उन्हें लगता है कि टीचर उनसे कुछ उगलवा कर उनके खिलाफ ही उपयोग कर सकती है.वैसे भी अविश्वास एक राष्ट्रीय बीमारी हो गयी है.खैर कभी कभी बच्चों को ये भी कहना पड़ता है कि बातचीत में शामिल होना उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा है इस तह मजबूरी में ही सही लेकिन जब बच्चे बातचीत में शामिल होते है तब बहुत आश्चर्यजनक ओर अद्भुत तथ्य सामने आते हैं.कभी बच्चों का डर तो कहीं उनके मन के संदेह सामने आते हैं तो कभी कभी लगता है कि बच्चे सच में बहुत छोटी छोटी साधारण सी बातें भी नहीं समझ पा रहे हैं क्योंकि ये बातें कभी उनके सामने हुई ही नहीं. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">एक दिन ऐसे ही किसी क्लास में हुई चर्चा यहाँ दे रही हूँ..आप खुद ही पढ़िए सोचिये और समझिये कि सच में इस पीढ़ी कि जरूरत क्या है?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर : आप लोग दिन भर में इतनी बातें करते हैं कभी सोचते हैं कि इनमे से कितनी बातें ऐसी होती हैं जिनका कोई अर्थ होता है?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: चुप्पी </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: अच्छा कितने लोग हैं जो रात में सोचते हैं कि हमने दिन भर में कितनी और क्या क्या बातें कीं?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: (सिर्फ एक मुस्कान) </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: देखिये अगर आपलोग बात नहीं करना कहते तो ठीक है में मेथ्स के सवाल दे देती हूँ.क्योंकि समय बर्बाद नहीं किया जा सकता कुछ तो करना ही है. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: नहीं मैडम </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: अच्छा आपमें से कितने बच्चों को लगता है कि आप अपनी किसी बात से अपने दोस्तों को या साथियों को हर्ट करते हैं?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: (इधर उधर देखते हुए) एक फिर दो फिर तीन चार बच्चे हाथ उठाते हैं?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: अच्छा कितनों को हर्ट करने के तुरंत बाद लगता है कि आपने हर्ट किया है?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"> फिर ८- १० हाथ उठाते हैं.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: अच्छा कितनों को लगता है कि हमें अपने दोस्त या साथी से माफ़ी मांगनी चाहिए?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"> (संकोच से इधर उधर देखते ६ -७ हाथ उठाते हैं)</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर : कितने लोग सच में माफ़ी माँगते हैं?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: एक दूसरे से आँख चुराते हुए २-३ बच्चे हाथ उठाते हैं. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: ये बताइए जब आपको लगता है कि आपने किसी को हर्ट किया लेकिन उससे माफ़ी नहीं मांगी,तो ये बात आपको परेशान करती है??</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: जी मैडम ,परेशान करती है बार बार वो बात ध्यान आती है. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: क्या बात ध्यान आती है और क्या लगता है?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: वो बात याद आती है कि हमने किसी को हर्ट किया या बुरा किया.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: तो कितने लोग है जो इस बात को महसूस करने के बाद दूसरे दिन या उसके बाद भी माफ़ी माँगते हैं?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: १-२ बच्चे हाथ उठाते हैं.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: चलिए कोई बात नहीं लेकिन इस बात को लेकर उस दोस्त के सामने आने में शर्म आती है या आप उससे बात नहीं करते ऐसा कितनों को लगता है? </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"> ( अब तक बच्चों को शायद ये विश्वास होने लगा था कि ये बातचीत हानिकारक नहीं है और मैडम इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रख रही हैं. तो वे खुलने लगे)</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: लगभग १२-१५ बच्चे हाथ उठाते हैं. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: अच्छा कितनो को लगता है कि अगर तुरंत माफ़ी मांग ली होती तो ज्यादा अच्छा होता?दोस्ती भी बच जाती और यूं परेशान भी नहीं होना पड़ता?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: हाथ उठाते हैं साथ ही अब एक दूसरे को देखते भी हैं. अभी तक कुछ बच्चे एक दूसरे से आँखे चुरा रहे थे. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: क्या आपको लगता है कि माफ़ी मांगना इतना मुश्किल है?? </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: मैडम शर्म आती है. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"> लगता है मेरा दोस्त क्या सोचेगा? </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर : अच्छा कितनो को लगता है कि अगर मेरा दोस्त एक बार सॉरी कह देता तो अच्छा होता.<span style="line-height: 1.8;">( कई बच्चे हाथ उठाते हैं )</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: अगर किसी बहुत पुरानी बात के लिए अगर कोई अभी सॉरी कहेगा तो क्या आप माफ़ कर देंगे और फिर से दोस्त हो जायेंगे?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: यस मैडम </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: अच्छा ठीक है आप लोग जिसे भी सॉरी कहना चाहते हैं उसे सॉरी कह दीजिये .( ४-५ बच्चे एक दूसरे को आँखों आँखों में सॉरी कहते हैं कुछ अभी भी चुप चाप बैठे टीचर को देख रहे हैं .उनमे अभी भी झिझक है )</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: ठीक है में आँखे बंद करती हूँ आप अगर किसी से सॉरी कहना कहते हैं तो आपके पास ३ मिनिट का समय है. ( टीचर आँखें बंद करती है और पूरी क्लास में हलचल शुरू हो जाती है.आँखे खोलने के बाद बच्चों के प्रफुल्लित चहरे दिखते हैं.)</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: आप लोगो को कैसा महसूस हो रहा है? </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: बहुत अच्छा ,हल्का महसूस हो रहा है.ख़ुशी हो रही है. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: अच्छा क्या सॉरी कहना वाकई इतना मुश्किल था??</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: नहीं मुश्किल नहीं था, कुछ ने कहा थोडा मुश्किल था , तो कुछ ने कहा कि मुश्किल तो है लेकिन कह सकते हैं. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: क्या आपको लगता है कि अगर हम तुरंत सॉरी कह दें तो हमारा टेंशन कम हो जाता?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: जी मैडम सॉरी तुरंत कह देने से सच में कम टेंशन होता.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">टीचर: तो क्या अब से आप लोग तुरंत सॉरी कहना अपनी आदत बनायेंगे? लेकिन हाँ किसी को जानबूझ कर हर्ट नहीं करना है कि बाद में सॉरी कह देंगे. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चे: यस मैडम अब से हम गलती करते ही तुरंत माफ़ी मांग लेंगे. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br />
</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">पीरियड ख़त्म होने को है. अब बच्चे बचे समय में एक दूसरे से बात कर रहे हैं वो खुश हैं और मुझे ख़ुशी है कि में उन्हें वह ख़ुशी दे पाई .एक फ्री पीरियड एक सार्थक चर्चा के साथ ख़त्म हुआ. बच्चों ने कुछ सीखा जो शायद पढाई से ज्यादा जरूरी भी था. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">kavita वर्मा </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br class="Apple-interchange-newline" /></div></div>kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-19328099810264875752012-06-21T07:08:00.000-07:002012-06-21T07:08:37.247-07:00अरे मेडम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कहते है जिंदगी हर कदम पर कुछ न कुछ सिखाती है,और ये पाठ हमें अपनी या दूसरों द्वारा किये गए भूलों ,कामों से तो मिलती ही है जीवन में मिलने वाले लोगो के सानिध्ध्य से भी मिलती है। अपने शैक्षणिक जॉब के दौरान सबसे ज्यादा सानिध्ध्य तो बच्चों का ही रहता है और बच्चे बहुत अच्छे शिक्षक होते है बस जरूरत है उनके काम, व्यवहार, बातों को उस सकारात्मक नज़रिए से देखने की।<br />
<br />
कुछ ही दिन पहले की बात है। दोपहर भोजन के दौरान क्लास ५ की कुछ लड़कियों को रोते हुए देखा। कारण पूछने पर पता लगा उनकी क्लास की ही किसी लड़की से लड़ाई हो गयी है ,उसने कुछ कहा है और इस वजह से एक दो नहीं पूरी ५ लड़किया हिलक हिलक कर रो रही है। अब एक लड़की लड़ाई में ५-५ लड़कियों को रुला दे तो पहला ख्याल मन में आता है ,जरूर उसने कुछ किया ही होगा...खैर उन लड़कियों को किसी तरह चुप करवा कर खाना खिलाया और में बात करूंगी इस बात का आश्वासन दिया ।<br />
<br />
खाने के बाद उस लड़की को देखा तो अपने पास बुलाया...अभी हम उसे दिव्या कहे? इससे बात करने में आसानी होगी। खैर मैंने पूछा दिव्या क्या हुआ?<br />
<span style="font-size: 0px;">मैडम</span> कुछ नहीं ,उसने भोले पन से जवाब दिया ।<br />
<span style="font-size: 0px;">firनीसासारी </span> लड़कियाँ क्यों रो रही है।<br />
अरे मैडम वो ,अरे मैडम कुछ नहीं एक ने मुझसे कहा की मैंने दूसरी लड़की को चिडचिडी कहा और जब मैंने दूसरी लड़की को बताया तो पहली वाली ने मना कर दिया अब सब मेरे पीछे पड़ गयी है।<br />
मुझे समझ तो कुछ नहीं आया ,फिर भी मैंने कहा ,लेकिन इस बात के लिए इतने सारे लोग क्यों रो रहे है?<br />
<br />
अरे मैडम कुछ नहीं,ये सब कहते है की में बहुत चिडचिडी हूँ ,मैंने कहा ठीक है में मान लेती हूँ की चिडचिडी हूँ ,तो क्या बहुत सारे लोग होते है। पर मैडम मैंने कहा की में अपने को बदल लूंगी । अब मैडम एक दिन में तो सब नहीं बदल जायेगा न? मैंने कहा है में अपने को बदल लूंगी...<br />
मैडम सब पता नहीं क्यों मेरे पीछे पड़ जाते है ...में ऐसी हूँ वैसी हूँ ...तो क्या हुआ मैडम ,मैंने कह तो दिया में बदल लूंगी खुद को। अब रोना तो मुझे चाहिए इस बात पर ,और देखिये में तो रो नहीं रही हूँ और ये सब रो -रो कर तमाशा कर रही है।<br />
में अवाक् उस लड़की का आत्म विश्वास देखती रही...किसी भी परिस्थिति को स्वीकार करने का उसका नजरिया किसी अनुभवी प्रोफेशनल से कम न था।<br />
दिव्या ,ये तो बहुत अच्छी बात है की तुम उनकी बातों को सकारात्मक तरीके से लेती हो और खुद को बदलने के लिए तैयार हो ,तो क्यों नहीं तुम उनसे जाकर बात करती हाथ मिलाओ और फिर से दोस्त बन जाओ।<br />
अरे मैडम आज नहीं अभी जरा उन सबको ठंडा हो जाने दो ,आज में बात करूंगी भी न, तो कोई सुनेगा नहीं। में बाद में उनसे बात कर लूंगी। वैसे भी मैडम अगले हफ्ते मेरा बर्थ डे आने वाला है ,देखना में कार्ड दूँगी न तो सब पार्टी में आ जायेंगे।<br />
में उस लड़की का आत्म विश्वास देखती रह गयी.उस कक्षा ५ की १० साल की लड़की का परिस्थितिओं को देखने का नजरिया ,उन्हें अपने हिसाब से ढाल लेने का विश्वास मुझे जिंदगी को नए तरीके से देखने का सबक सिखा गया।<br />
<br />
</div>kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-408432289702020528.post-49094225843071554742012-06-18T12:10:00.000-07:002012-06-18T12:10:08.449-07:00बच्चों को दे सकारात्मक माहौल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चों के लिए कुछ अच्छा करने की कोशिश हम सभी करते हैं.मकसद होता है उन्हें कुछ सिखाना,समझाना,सही राह दिखाना,उनमे अच्छी आदतों का विकास करना,सही गलत की पहचान करने की काबिलियत विकसित करना.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">इसी सन्दर्भ में बच्चों का एक अखबार निकलना शुरू हुआ नाम था दिशा और मकसद था बच्चों को जीने की सही दिशा बताना.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">एक दिन कक्षा आठ में बच्चों से इस बारे में चर्चा करने का अवसर मिला.मैंने बच्चों से पूछा की इस अखबार का प्रयोजन क्या है?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">बच्चों का जवाब था सकारात्मक ख़बरें बच्चों तक पहुँचाना .</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">सकारात्मक ख़बरें होती क्या हैं?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">इस बारे में बच्चे थोड़े भ्रमित थे. किसी ने कहा जो ख़बरें अच्छीं हों. अब अच्छी मतलब?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">जैसे भारत मैच जीता .</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">अच्छा मान लो अगर भारत हारा और पाकिस्तान जीता तो पकिस्तान जीता ये एक सकारात्मक खबर नहीं होगी? आखिर तो जीत की खबर ही सकारात्मक खबर है. पर बच्चे इस पर एकमत नहीं थे. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><span style="line-height: 1.8;">फिर किसी ने कहा जैसे मर्डर की खबर नकारात्मक खबर है.ऐसी खबर बच्चों को नहीं सुनना /बताना चाहिए. </span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">ठीक है तो क्या ऐसा कह सकते हैं की एक को छोड़ कर बाकी सब लोग जिन्दा और सही सलामत हैं.ये तो सकारात्मक खबर है या ये की कई घरों में चोरी होने से बच गयी. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">खैर ये तो बच्चों का मन टटोलने की कोशिश थी और बच्चे भी समझ रहे थे की ये सकारात्मक नहीं है और नकारात्मक क्या है ये भी उन्हें पता था जो सुखद था. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">इस बातचीत ने सकारात्मकता पर बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया.इस बारे में बच्चों से ढेर सारी बातें भी हुईं पर मन में जो एक बात कचोट गयी वह ये थी की भारत की जीत तो सकारात्मक है(जो बच्चों के देशप्रेम को इंगित करती है) लेकिन अन्य टीम की जीत जीत क्यों नहीं है?इसका अर्थ तो ये हुआ की हमारे बच्चे खेल को खेल भावना से नहीं ले रहे हैं.उनके लिए खेलने का अर्थ सिर्फ जीतना है पर क्या बिना हारे बच्चे जीत का मतलब समझ पाएंगे?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">मैंने जब कहा सकारात्मक ख़बरों का मतलब है सामाजिक संस्था,संस्कार और मूल्यों को दर्शाती ख़बरें,तो इन भारी भारी शब्दों के साथ इसे समझना उनके लिए मुश्किल था. उन्हें कुछ सरल उदाहरण देना जरूरी था. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">मैंने उन्हें बताया हम आये दिन ख़बरों में पढ़ते हैं कहीं चोरी हुई,दुर्घटना हुई हत्या डकैती या सरकारी दफ्तरों में धांधली रिश्वतखोरी और इन बातों को देखते सुनते पढ़ते धीरे धीरे हमारा विश्वास अच्छी बातों से कम होता जाता है और मन में ये विश्वास बनने लगता है की दुनिया चोर डकैतों धोखेबाजों से भरी पड़ी है .क्योंकि अच्छे लोगों की उनके अच्छे कामों की खबरें उस तादाद में हम तक नहीं पहुंचतीं जिस तादाद में बुरी ख़बरें हम तक पहुंचती हैं.हम लोग भी बुरे को देखने के आदि हैं.</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">सड़क किनारे कोई घायल तड़प रहा है उसकी मदद किसी ने नहीं की इस बारे में हम बात करते हैं पर सड़क पर किसी ठेले वाले के ठेले को धक्का लगवा कर सड़क पार करवाने वाले किसी ट्रेफिक हवालदार या अन्य व्यक्ति की तारीफ हम नहीं करते. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">मोबाइल गुम गया,चोरी हो गयी,जेब काट गयी इस बारे में बात होती है पर कोई अनजान व्यक्ति अगर सड़क पर पड़ी फाइलों को हम तक पहुंचा देता है तो उसके बारे में अखबार में बता कर इस अच्छाई को लोगों तक पहुँचने की चिंता हम नहीं करते.कोई हमें लिफ्ट दे कर अपना रास्ता बदल कर हमें अपने गंतव्य तक पहुंचता है तो हम सिर्फ एक थेंक्यु कह कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं पर समाज को एक अच्छे व्यक्ति के अच्छे काम से अवगत कराने की जिम्मेदारी हम नहीं निभाते. नतीजा ये होता है की बुरी ख़बरें लगातार ख़बरों में बनीं रहतीं हैं और अच्छाई पर से विश्वास कम होता जाता है. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">वैसे भी घरों में हम बच्चों को कौन सा सकारात्मक माहौल दे रहे हैं? सास-बहू सीरियल, रियलिटी शो के नाम पर हम बच्चों को एक दूसरों पर विश्वास ना करने की सीख ही तो दे रहे हैं.इसके अलावा हमारी रोज़मर्रा की बातें भी बच्चों को नकारात्मकता की ओर ही तो धकेल रहीं हैं. ट्रेफिक पुलिस को चकमा देना ,अपनी पहचान का इस्तेमाल कर अवांछित सुविधाएँ पाना रिश्वत दे कर काम निकलवाना जैसी जाने कितनी ही बातें कभी अनजाने ही और कभी जानबूझकर बच्चों के सामने करके हम उनके दिमाग में एक धीमा जहर भर रहे हैं. अच्छाई पर बुराई,तिकड़म की जीत हो सकती है यह विशवास उनके मन में घर कर रहा है. इसीलिए किसी की जीत को बच्चे आसानी से पक्षपात मान लेते हैं,खुद को डांट पड़ने को दोस्तों द्वारा की गयी शिकायत मान लेते हैं.ये नकारात्मकता उन पर इस कदर हावी है की महापुरुषों के जीवन के प्रेरक प्रसंग उनके लिए कहानियां भर हैं. वे उनसे कोई सीख नहीं लेते क्योंकि ऐसा कुछ होते ना वो देखते हैं ना सुनते हैं. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">इस सारे चिंतन के बाद बच्चों के भविष्य की जो भयावह तस्वीर उभरी वह था एक विश्वाश हीन समाज जिसमे रहने को हमारे बच्चे विवश होंगे.एक ऐसा समाज जिसमे ये विश्वास नहीं होगा की हमारे रिश्तेदार,पडोसी,दोस्त हमारी ख़ुशी में खुश होंगे .एक ऐसा समाज जिसमे अच्छा करने वाला मूर्खों की तरह घूरा जायेगा या वह अविश्वास के तीखे प्रहारों से आहत होगा .</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">कभी सोचा है हम इस नकारात्मकता को फैला कर बच्चों को एकाकीपन से भरा कैसा भविष्य देने जा रहे हैं? </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">आज समय आ गया है की हम बच्चों के अच्छाई पर विश्वास को पुख्ता करने के लिए काम करें. अच्छे काम का ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार करें.भले कामों को प्रमुखता से प्रचारित करें. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;">कहीं ऐसा ना हो अकेली सड़क पर जा रहा कोई बच्चा ठोकर लगने पर पीछे मुड़ कर देखे और सोचे जरूर मेरी परछाई ने ही मुझे धक्का दिया होगा. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br />
</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: -webkit-auto;"><br />
</div><br class="Apple-interchange-newline" /></div>kavita vermahttp://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.com6