सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

स्वस्थ नजरिया रखें

कल बिटिया चिढती झल्लाती स्कूल से लौटी ये स्कूल वाले भी जाने क्या क्या नियम बना देते है ऐसा समझते है कि हम सब बच्चे तो बस फालतू काम ही करते रहते है। हर लडके लड़की का एक दूसरे से बस कोई गलत रिश्ता ही है ,क्या लडके और लड़कियाँ सिर्फ फ्रेंड नहीं हो सकते ? ऐसा ही है तो फिर को- एड स्कूल खोलते ही क्यों हैं ? 
समझते देर नहीं लगी आज फिर स्कूल के नियमों को लेकर बच्चों को या तो तगड़ी झाड़ पड़ी है या कोई सजा मिली है इसलिए उसका मन बहुत ख़राब है।  खैर उसे पानी पिलाया और फिर उससे पूछा क्या हुआ ? 
गुस्सा मन में लावे की तरह खदबदा रहा था सहानुभूति के कोमल स्पर्श से उसे फूट पड़ने की जगह मिल गयी। कहने लगी "मम्मी आज हम लड़कियाँ वाश रूम गए थे वहाँ कुछ लड़कियाँ शायद कुछ ज्यादा देर से होंगी ,जब हम वापस लौट रहे थे तभी कुछ लड़के भी शायद लाइब्रेरी या खेल के मैदान से लौट रहे थे। हम लोग रास्ते में मिले और बातें करते हुए वापस क्लास तक आये।  बस हमारे फिजिक्स वाले सर हमें डांटने लगे ,कहने लगे कि तुम लड़कियाँ झूठ बोल कर क्लास से बाहर जाती हो और लड़कों के बातें करने में ही तुम लोगों को मज़ा आता है। तुम लोग कितनी देर से क्लास से बाहर हो।" 
हमने कहा भी "सर हम अभी सिर्फ पाँच मिनिट पहले ही आपसे पूछ कर गए थे " लेकिन उन्हें शायद दूसरी लड़कियों का याद रहा और उन्होंने स्पोर्ट्स टीचर को बुलवा लिया।  वाश रूम की तलाशी हुई तो वहाँ कुछ लड़कियाँ बातें करती और बाल बनाती मिल गयीं। बस उनके साथ हमें भी आधे घंटे क्लास के बाहर खड़ा रखा और खूब लेक्चर पिलाया। कोई हमारी बात सुनने को तैयार ही नहीं था सबको बस ये लगता है कि लडके लड़कियाँ अगर साथ में है बातें कर रहे हैं मतलब उनके बीच कोई चक्कर है।  
गुस्से, क्षोभ और अविश्वास किये जाने का दुःख उसके चेहरे पर तमतमा रहा था। 
मैंने उससे कहा "ये तो बहुत गलत बात है अगर कोई कुछ कह रहा है तो उसकी बात का विश्वास तो करना ही चाहिए , और अगर लडके लड़कियों ने आपस में बात कर ली तो कोई गुनाह तो नहीं किया।  आखिर हमने ये जानते हुए कि स्कूल को -एड है अपनी लड़कियों का वहाँ एडमिशन करवाया है और ये बातचीत विचारों का स्वस्थ आदान प्रदान भी हो सकती है सिर्फ अपनी कुंठित मानसिकता के चलते ये मान लेना कि लडके लड़कियाँ सिर्फ गलत अर्थों में ही दोस्त हैं कहाँ तक उचित है ?"
"मम्मी हम लडके लड़कियाँ अगर कोरिडोर में खड़े हो कर किसी बात पर हँस रहे हों आपस में कोई हँसी मजाक भी कर लें तो टीचर्स को लगता है कि इनके बीच जरूर कोई गलत बात ही हो रही है ये तो जब जबकि हम लोग ग्रुप में होते हैं अगर सिर्फ एक लड़का और एक लड़की जो अच्छे दोस्त हैं साथ खड़े बात कर लें या क्लास में साथ बैठें कुछ पढ़ भी रहे हों तो बस शामत आ जाती है उन्हें टीचर्स इतना उल्टा सीधा बोलते हैं कि क्या बताऊँ ?"
"ये तो गलत बात है , दोस्ती तो दोस्ती है और बातचीत तो व्यक्तित्व के विकास की अहम् सीढ़ी है इसे हमेशा गलत नज़रिए से देखना तो बिलकुल उचित नहीं है। अगर टीचर्स को कोई शक है तो उन्हें उन बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखनी चाहिए ,ऐसे सब को ही गलत नज़र से देखना तो ठीक नहीं है।"
"वैसे भी अगर कोई बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड हैं तो वो तो स्कूल के बाद भी एक दूसरे से मिलते जुलते हैं मोबाइल, इन्टरनेट पर ,कोचिंग के बहाने कोई उन्हें रोक तो नहीं सकता लेकिन ऐसे दो चार लडके लड़कियाँ होते हैं उनके लिए सभी को एक ही डंडे से हाँकना तो गलत है ना ?"
वह अभी भी गुस्से में थी कहना होगा कि गुस्से से ज्यादा क्षुब्ध थी एक बहुत गलत और गंभीर इलजाम लगाये जाने से और उसकी सफाई में कुछ कहने ना देने से व्यथित थी।  
कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे हमारे टीचर्स अभी भी सोलहवीं सदी में जी रहे है जब लडके लड़कियों को ऐसे अलग रखा जाता था जैसे बारूद और आग को कहीं पास आ गए तो धमाका हो जायेगा।  
मैं तो उसकी कल्पना शीलता पर मुग्ध हो गयी।  
हमारी क्लास की एक लड़की है जो इतनी भोली और मन की अच्छी है कि वह सबकी मदद करती है चाहे लडके हों या लड़कियाँ वह किसी एक ग्रुप में नहीं रहती सबके साथ रहती है सभी से हँस के बात करती है तो टीचर्स उसके बारे में उलटी सीधी बातें करते हैं उसे डाँटते है कहते है कि तुम्हारा तो लड़कों के साथ ही मन लगता है इतना बुरा लगता है न सुन कर, अब सबसे बात करने में भी प्रॉब्लम है और किसी एक से बात करने में भी प्रॉब्लम है। ये टीचर्स समझते क्या हैं हम लोगों को ?
मुझे याद आया मेरे ही स्कूल में पाँचवी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों की दोस्ती पर कुछ टीचर्स स्टाफ रूम में बैठ कर जिस तरह हँसी मजाक करते थे  उनकी दोस्ती को शक की नज़रों से देखते थे कि उन टीचर्स की बुध्धि पर तरस आता था।  दस साल के बच्चे सिर्फ बच्चे होते हैं माना कि आज उन्हें जिस तरह का एक्सपोज़र मिल रहा है प्यार, गर्ल फ्रेंड, बॉय फ्रेंड जैसी बातें अनजानी नहीं हैं उनके लिए, लेकिन फिर भी उनके लिए ऐसी बातें करना या सिर्फ दोस्ती के लिए डांटना बहुत ही गलत है। 
सबसे पहले जरूरत है कि टीचर्स और माता पिता लडके और लड़कियों की दोस्ती के प्रति स्वस्थ नजरिया रखें , उन पर विश्वास करें, यदि उनकी दोस्ती में कोई ऐतराज़ जैसी चीज़ नज़र आये तो उन्हें उलटी सीधी बातें कहने के बजाय उनसे प्रेम और शांति से बात करें , उनके आकर्षण का कारण जानने की कोशिश करें। कई बार घर परिवार से मिल रही उपेक्षा या पढाई और माता पिता की आकांक्षा का दबाव उन्हें दोस्ती के भावनात्मक पक्ष से गहरे तक जोड़ देता है। उम्र का भी तकाज़ा होता है लेकिन वह महज़ आकर्षण होता है जो समय के साथ कम भी हो जाता है।लेकिन उसे शक की नज़र से देखना बिलकुल ऐसा है जैसे लूले नौकर की कहानी। 
एक कंजूस सेठ को अपने तिल धूप में सुखाना था उसकी निगरानी के लिए एक नौकर की जरूरत थी,लेकिन नौकर तिल खा न जाये इसलिए उसने खूब सोच विचार करके एक लूले को काम पर रखा। दूसरे दिन जब वह तिल देखने गया तो उसे तिल कुछ कम लगीं। उसने नौकर से पूछा तूने तिल खाई हैं क्या ?
नौकर बोला मैं बिना हाथ के तिल कैसे खा सकता हूँ ?
मालिक बोला क्यों तू हाथों में पानी लगा कर उसमे तिल चिपका कर भी तो खा सकता है।  
कविता वर्मा 


8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही बात की आपने कविता जी , जमाना बदल गया लेकिन विचार नहीं बदले। यही दोगलापन पीढ़ी को दिग्भ्रमित कर रहा है। आपसे सहमत हूँ पूरी तरह से।

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    1. ji upasana ji sach me kai baar adhunik dikhane vale logo ki soch jaan kar hairat hoti hai .abhar aapka ..

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  2. बिना सोचे समझे कोई भी इल्जाम लगाना गलत है...बच्चों की हरकतों से पता चल जाता है की कौन सी लड़की या लड़का कैसा है..जो शक के घेरे में हो..उन पर निगाह रखनी चाहिए..दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा ...इस तरह उलटी सीधी बातें अध्यापकों द्वारा सुनाये जाने पर बच्चों पर मानसिक असर पड़ सकता है..उनमें हीनभावना आती है..

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  3. बिलकुल सही कहा आपने। स्वस्थ नजरिया सबसे ज्यदा जरूरी है।

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  4. बच्चों से अधिक, शिक्षकों को शिक्षा की आवश्यकता है

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  5. सार्थक और विचारणीय लघु कथा
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

    उजाले पर्व की उजली शुभकामनाएं-----
    आंगन में सुखों के अनन्त दीपक जगमगाते रहें------

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