सोमवार, 27 मई 2013

निर्णय गलत नहीं था ....

निर्णय गलत नहीं था ....

छोटी बेटी शुरू से नाज़ुक सी ही रही इसलिए उस पर पढाई का बहुत जोर हमने कभी नहीं डाला लेकिन हां शुरू से ही अच्छे नंबरों से पास भी होती ही रही .वैसे भी वो आर्टिस्ट है इसलिए फिजिक्स केमिस्ट्री मैथ्स पढना उसके लिए कभी आसन नहीं रहा . लेकिन इन सब्जेक्ट के साथ आगे सारी लाइनें खुली रहती हैं इसलिए उसे दिलाया . 

8 th तक तो कभी कोई परेशानी आयी ही नहीं .9th में सोशल साइंस जैसा बोर सब्जेक्ट पढना उसके लिए बहुत कठिन हो गया .उस समय उसे हौसला दिया जाता जैसे तैसे करके सिर्फ पास हो जाओ बस और दो साल की बात है फिर ये सब्जेक्ट कभी नहीं पढना पड़ेगा .खैर वो दो साल निकल ही गए और सोशल साइंस में भी अच्छे नम्बर आ गए . 

11th और 12th में सब्जेक्ट का कोर्स इतना ज्यादा है जितना कभी हमने ग्रेजुएशन में पढ़ा था .वह अपने आप से और सब्जेक्ट से जूझती रही .हमारे यहाँ मार्किंग सिस्टम भी ऐसा है की 11th में हर तरह से बच्चों का आत्मविश्वास तोडा जाता है . अगर उन्हें चार नंबर मिलते हों तो दो ही दिए जाते है स्कूलों में टीचर्स मेनेजमेंट के दवाब में इस कदर झल्लाए रहते हैं कि क्लास में पढ़ाने से ज्यादा लेक्चर पिलाते रहते हैं और उनके लेक्चर से बौखलाए बच्चे घर में माता पिता और कोचिंग के टीचर्स से भी वही लेक्चर सुनते घबरा जाते हैं .

खैर 11th भी जैसे तैसे हो गया लेकिन 12th में उसे इतनी घबराहट थी कि लगा कहीं वो इतना प्रेशर झेलने में नाकामयाब न हो जाए . बहुत सोच विचार कर मैंने अपनी जॉब छोड़ने का निश्चय किया .हालांकि  उसकी पढ़ाई करवाना तो मेरे बस का नहीं था इतने सालों में मैं विषय से पूरी तरह से कट चुकी थी लेकिन उसके आत्मबल को बनाये रखने और बढ़ाने के लिए ये जरूरी भी था . 

मैंने सोच लिया अब से हर कदम पर बिटिया के साथ रहूंगी . शुरुआत की उसे अपने पास बैठा कर पढ़ाने की .अब तक वह वैसे ही पढ़ती थी जैसे स्कूल और कोचिंग में पढाया जाता था मैंने उसे प्रश्न के हिसाब से पढने को कहा .एक ही उत्तर के लिए कई अलग अलग तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं कई प्रश्न घुमा फिरा  कर पूछे जाते है होता ये था कि  उसे आता सब था लेकिन वह प्रश्न ही नहीं समझ पाती थी .कुछ दिन वह रोज़ मेरे साथ प्रश्न के हिसाब से उत्तर लिखने की प्रेक्टिस करती रही  फिर खुद से करने लगी .लेकिन अभी बहुत प्रेक्टिस जरूरी थी .

अभी उसका आत्मविश्वास जो डगमगाया हुआ था उसे थामना बहुत जरूर था . उसकी बड़ी बहन यानि बड़ी बेटी ने उसके लिए क्वेश्चन पेपर बनाये पहले सरल फिर कठिन उन्हें चेक किया और फिर साथ बैठ कर उनके बारे में डिस्कस किया कहाँ क्या और कैसे लिखा जाना चाहिए ये बताया . 

उसके पापा से कई बार इसी बात को लेकर लड़ाई हुई की आकर सिर्फ टी वी मत देखा करो उसके साथ बैठो .उसे लगना चाहिए सब उसके साथ हैं .एक बार हम दोनों मूवी देखने जाने के लिए तैयार हो कर घर से निकलने ही वाले थे दूसरे दिन उसका पेपर था तैयारी हो चुकी थी ,कि  वह थोड़ी रुआंसी सी दिखी बस जाना कैंसिल और पापा उसके साथ बैठ कर गणित के सवाल हल करने लगे . जब दो चार सवाल उसने पापा को करना सिखा दिया तो उसके चेहरे की चमक लौट आयी . 

फिर भी होम एग्जाम में जब उसका रिजल्ट ठीक नहीं आया तो बहुत खीज होती थी उसे दबाना बहुत मुश्किल होता था लेकिन फिर भी उसका हौसला ही बढाया .

मैंने जॉब छोड़ने का निर्णय लिया मन में सिर्फ और सिर्फ उसकी पढ़ाई उसके साथ रहने की चाह थी . कभी कभी मन में एक कसक भी होती थी लेकिन फिर खुद को समझाया अपने बच्चो से बढ़ कर कुछ नहीं है .
परीक्षा की तैयारियों के बीच बीच में वह आकर मेरे पास बैठ जाती थोड़ी देर लडिया लेती गपिया लेती और फिर नए जोश से जुट जाती .कभी कभी जब हताश होती तो मैं उसे खींच लाती चलो छोडो हम टी वी देखते है .थोड़ी देर के लिए उसका मन पढ़ाई से हट जाता और फिर नयी उर्जा से पढना शुरू करती . 

ऐसे समय में बड़ी बिटिया को अलग से यही कहती उसे बूस्ट अप करो उसका मोरल डाउन नहीं होना चाहिए अगर कुछ नहीं आता है तो धीरे से उसे बताओ चिढो मत उसे ये एहसास कभी मत कराओ की उसे नहीं आता .हालांकि वह भी कोई बहुत बड़ी नहीं है लेकिन उसने भी वक्त की नजाकत को समझ कर उसे बहुत सपोर्ट किया जो बड़े बड़े अनुभवी भी नहीं कर पाते . 

एग्जाम टाइम में कभी उसे पढने के लिए जोर नहीं डाला बल्कि यही कहा की तुम्हे सब आता है तुम कर लोगी तुमने सब कर लिया है बस अब मस्त रहो .

आज सात महीनों की धीर ,लगन ,उसका साथ, उसका हौसला बढाया जाना सब सफल हो गया आज 12th का रिजल्ट आ गया बिटिया अच्छे नंबरों से पास हो गयी .

ये सब मैं खुद की वाहवाही के लिए नहीं लिख रह हूँ बल्कि ये एक छोटी सी कोशिश है एग्जाम का प्रेशर झेल रहे बच्चों के माता पिता को एक गाइड लाइन देने कि हमारी छोटी छोटी कोशिशें उन्हें मंजिल की राह में आने वाली मुश्किलों को फूल में बदल देती है .आज जिस तरह बच्चे आत्मघाती कदम उठा रहे है जिसके बाद सारे रास्ते ही ख़त्म हो जाते है उनसे उन्हें बचाने की .अपने बच्चों पर विशवास करिए उनका हौसला बढाइये मंजिल तो वे खुद पा लेंगे . 

कविता वर्मा 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बढिया, क्रति को ढेर सारी शुभकामनाएं..

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  2. आज की पढाई के प्रेशर को आपने बखूबी बयान किया. यह सही है कि आजकल बच्चों से ज्यादा पेरेंट्स को भी यह प्रेशर झेलना पडता है, अपनी कई खुशियों को स्थगित कर देना पडता है, आपने पग पग पर बच्ची की होंसला अफ़्जाई के साथ ही उसके मनोबल को बनाये रखा, इसी तरह हर पालक को करना चाहिये.

    12 वीं के रिजल्ट्स में कई बच्चे अच्छा नही कर पाये हैं उनकी और पेरेंट्स की पीडा भी समझने लायक है.

    बिटिया अच्छे नंबर्स से पास हो गयी उसके लिये आपको और बिटिया को खूब बधाईयां और भविष्य के लिये शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. बहुत ही बधाई हो .....बिटिया के साथ रहना उसके मनोबल को बढ़ाएगा ही.....आपका निर्णय गलत नहीं था....उल्टा आपने नौकरी से भी कठिन काम को पकड़ा था...एक जीवन को आने वाले समय के साथ जीने की ताकत और हौसला सिखाना आसान नहीं होता...कम से कम आपकी बेटी को इतना पता होगा कि वो सबकुछ कर सकती है....इससे एक बात और पता चलती है कि आपकी बड़ी बिटिया में आपका ही आत्मबल है...आप और आपके पति जूझने की ताकत रखने वाले एक व्यकित्व का निर्माण कर रहे हैं...जाहिर है ऐसे ही लोगो की देश को भी जरुरत है..ये ठीक है कि आप अपनी बेटी के लिए कर रहे हैं...मगर ये निर्णय बेटियों की जिम्मेदारी पूरी होने के बाद समाज के भी काम आ सकता है....दूसरे ऐसी बेटियां ही समाज का निर्माण करेंगीं...और ये भी सच है कि ऐसे लोग विकास करेंगे तो देश अपने आप ही विकास भी करेगा....इस तरह के निर्णय शुरु में व्यक्तिगत लगते हैं..पर समाज में ऐसे निर्णय लेने वाले स्त्री औऱ पुरुष की तादाद बढ़ने लगे तो कायाकल्प होते देर नहीं लगेगी हमारे समाज की।

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  5. बहुत सुन्दर आलेख .. आपकी इस रचना के लिंक का प्रसारण सोमवार (03.06.2013)को ब्लॉग प्रसारण पर किया जायेगा. कृपया पधारें .

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  6. बधाई बिटिया को और मम्मी पापा को
    दरअसल इस तरह का पारदर्शी अभियान चलाने से ही बच्चे भविष्य में
    तरक्की करते हैं
    बहुत सार्थक प्रस्तुति
    आभार

    आग्रह है पढ़े
    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  7. बहुत सुन्दर आलेख ..

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  8. .अपने बच्चों पर विशवास करिए उनका हौसला बढाइये मंजिल तो वे खुद पा लेंगे .
    --
    सार्थक प्रस्तुति!

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  9. अधिकतर अध्यापक मनोबल घटाते ही हैं.बढाने की बात करने वालो की भी चर्चा होनी चाहिए.

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  10. Very correctly written. Children need our attention at every stage. It is our duty to extend our generous support to our children well in time.

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  11. बहुत सही कहा आपने यदि बच्चों पर विश्वास नहीं तो वे भी हम पर कैसे विश्वास करेंगे ..
    बहुत बढ़िया प्रेरक कथा

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