शनिवार, 6 अगस्त 2016

'जंगल की सैर '

मेरी पुरुस्कृत बाल कहानी 'जंगल की सैर ' मातृभारती पर। पढ़े और अपनी राय दें

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

एक यहूदी लोक कथा

 सुनो कहानी कविता वर्मा
एक यहूदी लोक कथा
https://www.youtube.com/watch?v=OTvOsf0fHjs

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

त्यौहार

मुझे याद है जब हम छोटे थे नवरात्री की अष्टमी से दिवाली की छुट्टियाँ लग जाती थीं। झाबुआ जिले के रानापुर में रहते पहली बार गरबे सीखे थे। दशहरे के दिन से रोज़ सुबह शाम घर के दरवाज़े पर गोबर से चौक लीप पर रंगोली बनाई जाती थी। छोटा सा गाँव था उसमे बहुत बड़े पद नाम वाला हमारा घर और आसपास बस्ती में रहने वाली मेरी सहेलियाँ। गोबर से लीपना आता नहीं था। दादी अड़ोस पड़ोस में किसी को आवाज़ दे कर गोबर मँगवाती और वह गोबर देने के साथ ही चौक लीप जाता। फिर शुरू होता एक सीध में गिन गिन कर बिंदी डालना रंगोली बनाना और रंग भरना। रंगोली बना कर तैयार हो कर निकल पड़ना मोहल्ले में सबकी रंगोली देखने। 
मैंने जब रंगोली बनाना सीखा तब सबसे ज्यादा खुश दादी थीं। बहुत पहले बुआ रंगोली बनाती थीं फिर वे शादी हो कर अपने घर चली गई। मम्मी बुंदेलखंड से हैं वहाँ रंगोली बनाने का रिवाज़ नहीं है तो वे बना नहीं पाती थीं। ऐसे में दादी अड़ोस पड़ोस की लड़कियों को मनाती बुलाती थीं लेकिन त्यौहार पर किस के पास समय होता है? जब मैंने रंगोली बनाना सीखा दादी को परम संतोष था कि अब दीवाली दशहरा घर का आँगन सूना नहीं रहेगा।  घर में बेटियों के महत्व को प्रतिपादित करती ये छोटी सी पर बहुत बड़ी बात थी। बहुएँ घर के रीति रिवाज़ों में रचती बसती हैं पर बेटियाँ तो उन रीति रिवाज़ों की घूँटी पी कर ही बड़ी होती हैं।  
दीवाली की सफाई में पूरा घर लगा होता था। छत पर धूप में सामान रखना उठाना डिब्बे साफ़ करना जाले झाड़ना पलंग सोफे खिसका कर सफाई करना कितने ही काम हँसते खेलते हो जाते थे। 
अर्ध वार्षिक परीक्षाएँ दिवाली बाद और वार्षिक परीक्षायें होली बाद होती थीं। होली भी बड़े मौज मस्ती में मनती थी गुझिया पपड़ी रंग पिचकारी। 
एकल परिवार होने से और माता पिता दोनों के कामकाजी होने से त्यौहार मनाने में पहले जैसा उमंग उत्साह अब रहा नहीं। रही सही कसर स्कूल के एकेडेमिक टाइम टेबल ने पूरी कर दी। राखी के समय क्वार्टरली एग्जाम दिवाली या नवरात्री के समय अर्धवार्षिक (हाफ इयरली) और होली के समय वार्षिक परीक्षाएँ (एनुअल एग्जाम) . उस पर इल्ज़ाम ये कि आजकल के बच्चे तीज त्यौहार मनाना नहीं जानते उन्हें अपनी संस्कृति को जानने की फुर्सत ही नहीं है।  
जब स्कूल में पढ़ाती थी छुट्टियों के लिये बच्चों को ढेर सारा होमवर्क देने का आदेश आ जाता था। बुरा लगता था मन नहीं होता था बच्चे भी उदास हो जाते थे। पर क्या करें मजबूरी थी क्योंकि क्या होमवर्क दिया गया है उसकी एक कॉपी जमा करवानी पड़ती थी। तब मैं होमवर्क करने का टाइम टेबल बना देती थी उन्हें बता देती थी किस दिन कितने प्रश्न हल करने हैं और त्यौहार से दो दिन पहले सब ख़त्म कर बेग टांड पर चढ़ा देना।  कुछ बच्चे फिर भी उदास रहते मैम आपने तो कह दिया पर मम्मी नहीं मानेंगी। पता नहीं ये मम्मियाँ क्यों नहीं समझतीं कि बच्चों के लिए भी ब्रेक जरूरी है। पूरा मानसिक आराम जिसमे पढाई की कोई चिंता उनके दिमाग में न रहे।  

वार्षिक परीक्षा के बीच होली पड़ी मैंने बच्चों से पूछा होली खेलना है ? बड़े उत्साह से आवाज़ आई यस मैम लेकिन।  ये लेकिन तो अब हर त्यौहार के साथ जुड़ गया।  मैंने कहा सुबह जल्दी उठना जैसे रोज़ स्कूल आने के लिए उठते हो।  दूध पी कर दो घंटे पढ़ाई करना फिर नाश्ता करके दो घंटे होली खेलना। मम्मी मना करें तो कहना मैम ने कहा है होली जरूर खेलना नहीं तो एग्जाम में नंबर कट जायेंगे।  दिन में थोड़ा आराम करना और शाम को फिर एक घंटे पढ़ाई करना। 
एग्जाम के बाद रिजल्ट के लिए पेरेंट्स आये तो कइयों ने शिकायत की। "मैम आपने कहा था होली जरूर खेलना ? मैंने कितना मना किया पर ये माना ही नहीं।"  
मैंने उनसे पूछा "आप अपने बचपन में होली खेलते थे ना फिर आपके बच्चे क्यों नहीं ?"
"लेकिन मैम एग्जाम।"
"हाँ एग्जाम हैं लेकिन उसने पढाई तो की ना ?"
"जी मैम सुबह दो घंटे बिना कहे पढाई की।  कहने लगा मैम ने कहा है पहले दो घंटे में इतना कोर्स याद करना फिर होली खेलना।" 
"फिर क्या दिक्कत है ? अगर वह पढ़ाई के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझ रहा है तो उसे त्यौहार मनाने से क्यों रोका जाये ? बच्चे जब तक अपने त्यौहार नहीं मनाएँगे तो उनके बारे में जानेंगे कैसे ? ऐसे तो उनकी जिंदगी कितनी नीरस हो जायेगी ? हमारे त्यौहार हमारी जिंदगी की आपाधापी को कम करके अपनों के साथ मिलने जुलने का जीवन की एकरसता को तोड़ने का काम करते हैं। आप क्यों ये स्वाभाविक जीवन प्रवाह रोकना चाहते हैं ? कम से कम प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के दौरान तो उन्हें भरपूर जीने दीजिये। जीवन की विविधता देखने समझने दीजिये।" 
इस पीढ़ी के माता पिता ने जागरूक होने का अर्थ बच्चों की पढाई लिखाई हॉबी क्लासेज करियर खाने पीने का ध्यान रखने से तो लिया है लेकिन क्या हम उन्हें जीवन पद्धति रीति रिवाज़ त्यौहार तनाव दूर करने के प्राकृतिक तरीकों से दूर तो नहीं कर रहे हैं ? 
कविता वर्मा 




 

रविवार, 11 जनवरी 2015

पी टी एम खट्टे मीठे अनुभव


टीचिंग जॉब में बच्चों के साथ नित नए अनुभव होते हैं जो न सिर्फ आपको रोमांचित करते हैं बल्कि कई नई नई  बाते सिखाते हैं और एकरसता नहीं होने देते। हर दिन नए अनुभव हासिल करने के लिए एक मौका  होता है और इनका सबसे रोमांचक हिस्सा होता है पालक शिक्षक मीटिंग जिसे हम पी टी एम कहते है। हालांकि कई बार पेरेंट्स के कड़े तेवरों का सामना भी करना पड़ता है तो कई पेरेंट्स इतने ध्यान से बात सुनते और समझते हैं कि अपनी समझदारी पर खुद को ही शाबाशी देने का मन करता है( बाकि तो ये थैंक लेस जॉब है )। हाँ ये मीटिंग बड़ी थकाऊ और कभी कभी उबाऊ भी होती हैं जब आपको एक ही बात बार बार कई घंटे तक दोहरानी होती है लेकिन ये भी सच है की अंत में कई खट्टे मीठे अनुभवों को लेकर उठते हैं। 
कई बार पिछली बार की पी टी एम का रिज़ल्ट भी मिलता है तो कई बार पेरेंट्स के नज़रिये में आया बदलाव भी नज़र आता है। इस बार की पी टी एम के कुछ अनुभव आपसे साझा करना चाहती हूँ। 
और मन लग गया 
आज एक बच्ची अपनी मम्मी के साथ आई। पिछली बार के पी टी एम में जब वह  आई थी तब उसकी मम्मी थोड़ा चिंतित थी। कहने लगीं  इसे मैथ्स में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है करती है लेकिन बिलकुल बेमन से। मैथ्स तो बेसिक सब्जेक्ट है इसमें तो इंटरेस्ट होना ही चाहिए। हालांकि वह लड़की ठीक ठाक कर रही थी। हाँ मैथ्स में उसका मन कम लगता था ये तो मैंने भी नोटिस किया था। मैंने उसे समझाया "जब तुम बिना इंटरेस्ट के इतना कर लेती हो तो अगर सोच लो कि मन लगा कर पढ़ोगी तो कितना अच्छा कर सकती हो, फिर इंटरेस्ट तो लेते लेते ही आएगा ना जैसे जब पहली बार मेगी खाते है तो सबको उसका स्वाद अच्छा नहीं लगता लेकिन खाते खाते पसंद आने लगता है ना ? इसलिए थोड़ा और मन लगाओ। " 
क्लास में उसमे आये परिवर्तन को मैंने नोटिस किया था वह खुद से सवाल हल करने लगी थी।समझ ना आने पर पूछ लेती थी। 
आज जब वह आई तो बहुत खुश थी। इस बार वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई थी। मैंने उससे पूछा "खुश हो उसने मुस्कुरा कर सिर हिलाया। फिर मेरी टॉफ़ी कहाँ है ?" 
वह मुस्कुरा दी। 
"अच्छा मम्मी  ने तुम्हे टॉफ़ी दी ?"
"नहीं "
"अरे ये तो गलत बात है न तुम्हे टॉफ़ी दी न मुझे। अब से हम मैथ्स नहीं पढ़ेंगे। ठीक है ना। "
" उसने इंकार में सिर हिलाया। "
" मैडम अब तो इसे मैथ्स बहुत अच्छा लगता है जब भी पढने को कहो बस मैथ्स ही करती है। " एक संतुष्टि उस की मम्मी की आँखों से होंठों तक पसरी थी। 

***
मिस्टर परफेक्टनिस्ट 
एक बच्चा अपने पापा के साथ आया था उसके मैथ्स में 25 में से 24 मार्क्स आये थे। वह खुश था मैं भी खुश थी। मैंने उसे शाबाशी दी उसके पापा तब तक चुप रहे फिर अचानक बोल पड़े "मैडम मैं सोचता हूँ कि अगर सिक्स्थ क्लास के इतने सिम्पल मैथ्स में ये 24 मार्क्स पर संतुष्ट हो जाता है तो ये एक तरह से इसकी ग्रोथ रुकने जैसा है। मेरा मानना है कि अगर ये परफेक्ट हो सकता है तो इसे उसके लिए कोशिश करना चाहिए। आपसे भी मैं इतना सपोर्ट चाहूँगा कि आप उसे फुल मार्क्स लेने के लिए प्रोत्साहित करें।"
मैंने इस बीच दो तीन बार बच्चे की ओर देखा उसके चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे , उसकी ख़ुशी काफूर हो चुकी थी वह अपमानित सा महसूस कर रहा था और मैं समझ नहीं पा रही थी क्या कहूँ और उसके पापा थे की अपनी रौ में बोलते जा रहे थे। मन तो हो रहा था कि उनसे कहूँ की सिक्स्थ का जो मैथ्स आपके लिए सरल है उस १० साल के बच्चे के लिए तो चाईनीज़ सीखने जितना ही कठिन है। एक नंबर कम आना मतलब किसी कांसेप्ट का समझ ना आना नहीं है बल्कि ये तो साधारण गलतियों की वजह से है। एक मन हो रहा था कि पूछू जब आप सिक्स्थ में थे आपको कितने नंबर आये थे। अगर वे आपको याद नहीं हैं तो इसके ये नंबर कौन और कितने दिन याद रखेगा।  या कि उनसे कहूँ कि अभी से परफेक्टनिस्ट होने का जो प्रेशर आप डाल रहे है इसकी वजह से जब उसे सच में परफेक्ट होना चाहिए तब तक वह कहीं विषय में अपनी रूचि ही न खो दे। लेकिन एक टीचर के रूप में बच्चों और पेरेंट्स के सामने शिष्टाचार की कई दीवारे होती हैं इसलिए खुद को रोक लिया। 

***
तो क्यों न कुछ और 
एक लड़की अपनी मम्मी के साथ आई वह पढने में बहुत अच्छी है उसकी मम्मी का भी कहना था कि उसे मैथ्स में कोई दिक्कत नहीं है वह जो भी करती है खुद ही करती है। बाकि सभी सब्जेक्ट्स में भी वह बहुत अच्छी है। देखा जाये तो बात चीत के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था कि अचानक मम्मी जी ने पूछा " मैडम आप कोई और बुक बता दीजिये जिससे इसे कुछ एक्स्ट्रा प्रैक्टिस करने को मिले या तो कोई ऐसी साइट बता दीजिये जहाँ से ये एक्स्ट्रा प्रोब्लेम्स सॉल्व कर सके। अभी तो इसके पास बहुत सारा समय होता है जिसे ये उपयोग कर सकती है। "
 बिटिया ने इस बात पर बुरा सा मुंह बनाया तो मम्मी समझाने लगीं "बेटा जितना एक्स्ट्रा मेहनत करोगी उससे तुम्हारी स्पीड अच्छी होगी। आगे किसी कॉम्पिटिशन में ये स्पीड ही आपके काम आएगी। और जितना करना हो करना, नहीं तो कोई बात ही नहीं है।"
 हालांकि मैं और वह दोनों समझ रहे थे कि एक और बुक आने के बाद उसे करना थोपने की हद तक अनिवार्य हो जायेगा। खैर मैंने उन्हें एक दो ऑनलाइन साइट्स बताई और कहा मैं और पता कर के बताउंगी अभी अचानक तो मुझे याद नहीं आ रहा है। इसके सिवाय कोई और चारा ही नहीं था। 

*** 
हमारे ज़माने में 
ऐसे ही एक बच्चे के पापा आये जिन्हे ये भी नहीं पता था कि साल में कितने एक्साम्स होते हैं उनमे से कितने एक्साम्स उसने नहीं दिए हैं। खैर बच्चा पढने में ठीक है अच्छा स्टूडेंट है इसलिए ऐसी कोई विशेष बात बताने के लिए नहीं थी उन्हें सिर्फ ये बताया कि अब फाइनल एक्साम्स के लिए रिवीजन शुरू करे। 
बस वे शुरू हो गए कहने लगे "एक एक सवाल को चार चार बार करो घोंट डालो हम तो पूरी पूरी कॉपियाँ भर देते थे इतनी प्रैक्टिस करते थे रोज़ दो घंटे मैथ्स करते ही थे। "
चूंकि बातचीत बड़े सौहाद्र पूर्ण अंदाज़ में चल रही थी इसलिए मैंने हँसते हुए कहा "सर आपके समय में टी वी नहीं था , इंटरनेट कम्प्यूटर गेम्स नहीं थे , इतने सारे असाइनमेंट नहीं दिए जाते थे ,इतनी सारी  को करिकुलर एक्टिविटीज नहीं थीं इतनी स्पोर्ट क्लास हॉबी क्लास नहीं होती थीं। इनके पास ये सब है और इनका दिन वही चौबीस घंटों का ही है। "
एक क्षण को तो वे चुप हुए फिर हंसने लगे "हाँ मैडम ये तो है। मेरा बेटा बास्केट बॉल का खिलाडी है और हम लोग इतने व्यस्त है कि इसे बिलकुल समय नहीं दे पाते ये खुद ही सब करता है। "

***
पेरेंट्स के डर 
एक लड़की अपनी मम्मी के साथ आई वह लगातार तीन एक्साम्स में कुछ अच्छा रिजल्ट नहीं ला पा रही है। हालाँकि उस पर क्लास में भी ध्यान दिया है वह समझती है खुद करती भी है लेकिन  घबरा जाती है प्रश्नों को समझ नहीं पाती और सब गड़बड़ हो जाता है। मैंने उसे प्रैक्टिस करने का तरीका बताया उसे हिम्मत बंधाई कि वह घबराया न करे उसे आता सब है बस घबराहट में वह प्रश्न समझ नहीं पाती । 
मेरी बात पूरी हुई भी नहीं थी कि उसकी मम्मी अचानक बोल पड़ीं " मैडम अगर ये नहीं कर पाई तो री एग्जाम तो होती है ना ? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये फेल हो गई तो इसे फिर से इसी क्लास में रिपीट करना पड़ेगा। ?वैसे मैडम आंठवी तक तो फेल नहीं करते ना। ?
मैंने बच्ची की तरफ देखा उसका चेहरा फक पड़ गया "मैंने कहा अरे इसकी नौबत ही नहीं आएगी वह समझदार है सिर्फ घबरा जाती है।अब ठीक से प्रैक्टिस करेगी तो बढ़िया कर लेगी आप चिंता ना करें।"
लेकिन मम्मी के डर अपनी जगह थे ,"मैडम कभी फेल हो गई तो स्कूल से निकाल तो नहीं देंगे ना।?" 
मैं मम्मी को कैसे चुप करवाऊँ जितना मैं उस बच्ची का हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रही थी उतना ही उसकी मम्मी अपनी घबराहट में उसे हतोत्साहित करने में लगी थीं। 
आखिर मैंने उससे कहा  "बेटा जरा बाहर कॉरिडोर में जाकर देखो तो अपनी क्लास के और कितने बच्चे और उनके पेरेंट्स आये हैं?" जैसे ही वह दरवाजे तक गई मैंने दबे स्वर में उसकी मम्मी से कहा "देखिये वह पहले ही घबराई हुई है और री एग्जाम की बात करके आप उसे हतोत्साहित न करें। इस समय उसे खुद पर विश्वास दिलाना है। री एग्जाम होती है लेकिन हमें कोशिश ये करनी है की उसकी नौबत ही ना आये। " मम्मी को शायद बात समझ आ गई वो एकदम चुप हो गई। 
तब तक उसने आकर कहा मैडम कॉरिडोर में और कोई बच्चे नहीं हैं। "
"ओ के  बेटा अब ठीक से पढ़ना तुम कर सकती हो और कोई भी प्रॉब्लम आये मुझसे पूछना ठीक है ?"
"जी मैडम"

कई बार लगता है की सी बी एस ई टीचर्स के लिए इतनी वर्कशॉप का आयोजन करता है उसे पेरेंट्स के लिए भी साल में कम से कम दो वर्कशॉप आयोजित करना, जरूरी करना चाहिए जिससे सही पेरेंटिंग की दिशा तय की जा सके। 
क्रमशः 

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

जवाब


करीब पंद्रह सालों से शिक्षण के क्षेत्र में हूँ। रोज़ ही कई तरह के अनुभव होते है कुछ अच्छे कुछ मन को अच्छे न लगने वाले भी। ऐसे में सोचने लगती हूँ क्या अभी भी इस में बने रहना चाहिए ?
करीब चौदह साल की नौकरी के बाद दो साल का ब्रेक लिया उसके बाद फिर ज्वाइन किया। कहते है न समय की नदी में पानी बड़ी तेज़ी से बहता है वापसी पर सब कुछ बदल बदला सा लगा। कुछ आराम का असर था तो कुछ माहौल और काम के तरीके बदलने का। रोज़ सोचती थी क्या वापस ज्वाइन करके ठीक किया ? एक दिन मन सुबह से ही उदास था सुबह किसी से बात भी नहीं की बस रजिस्टर उठाया और क्लास में जाने के लिए सीढ़ियाँ उतरने लगी। सामने से एक लड़की कंधे पर बैग लटकाये सीढ़ियां चढ़ रही थी मेरे पास आकर पूछने लगी "आप कविता मेम हैं ना ?" 
हाँ ,सुनकर वह खुश हो कर कहने लगी "मेम आप को शायद मेरी याद नहीं होगी लेकिन आपने मुझे पढ़ाया है। "
"अच्छा "उदासी की एक हलकी सी परत उडी तो लेकिन धुंधला पन  नहीं गया। "कब किस क्लास में ?"
"मेम अ ब स स्कूल में जब मैं दूसरी कक्षा में पढ़ती थी आप मुझे मैथ्स पढ़ाती  थीं। मेम आपने ही मैथ्स में इतना इंटरेस्ट पैदा किया मुझे मैथ्स बहुत अच्छा लगने लगा। "
"ओह्ह ,उस स्कूल को छोड़े ही कई साल हो गए अब तुम कौन सी क्लास में हो। "
"मेम बारहवीं में। "
"और क्या सब्जेक्ट लिया है ?" खुद के इस सवाल पर हंसी आई खुद ही जवाब दिया मैथ्स !!! 
"यस मेम "उसने भी हंस कर जवाब दिया। " आपको देख कर अच्छा लगा मेम।  
कह कर वह आगे बढ़ गई साथ ही मन पर छाए धुंधलेपन को भी साथ ले गई। मन में उठने वाले नकारात्मक विचारों का इससे बेहतर कोई जवाब शायद हो ही नहीं सकता था। 

बुधवार, 22 जनवरी 2014

शिष्यों की परीक्षा

एक शिष्य  सोचा कि जब गुरूजी ने कहा है तो ये काम करना ही चाहिए ,इसलिए वह बार बार प्रयास करता रहा।
http://www.youtube.com/watch?v=Ny62AHriu_g&feature=youtu.be


गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

छोटी सी सलाह

रोज़ सुबह बच्चों की यूनिफार्म चेक होतीं और वह बच्चा लगभग रोज़ ही कभी गन्दी यूनिफार्म कभी बिना इस्त्री किये कपड़े कभी बिना पोलिश किये जूते के लिए खड़ा होता। किताब कॉपियाँ नहीं लाना ,होमवर्क न करना ये भी रोज़ का ही काम था।  हालाँकि वह पढ़ने में ठीक ठाक था पर अधिकतर खोया खोया ही रहता, शायद उसकी सुबह ही सजा से शुरू होती थी इसका असर था।  
स्टाफ रूम में अक्सर उस बच्चे की चर्चा होती थी लेकिन एक वितृष्णा के साथ , लगभग हर टीचर उसकी लापरवाही से परेशान थी। हाँ चर्चा इस बात की भी होती की वह शहर के करोड़पति का इकलौता बेटा था और उसकी माँ सुबह की फ्लाईट से बोम्बे जाती है शोपिंग करने और शाम की फ्लाईट से वापस लौट आती है।  घर और बच्चा नौकरों के हवाले रहते हैं। सुबह जब वह स्कूल आता है तब मम्मी पापा सो रहे होते हैं और शाम को जब घर लौटता है वे अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं। उसे कुछ कहो तो वह सिर नीचा करके चुपचाप सुन लेता था एक शब्द भी न कहता। 
करीब महीने भर मैं उसे देखती रही उस पर तरस आता लेकिन कुछ कहना ठीक भी नहीं लगा।  एक दिन मैंने उसे क्लास के बाहर बुलाया और उससे कहा -"बेटा ये तुम रोज़ गन्दी यूनिफार्म क्यों पहनते हो ?"
उसकी आँख डबडबा गयीं लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं बोला।  
मैंने फिर कहा -"आप अब सिक्स्थ क्लास में आ गए हो, इतने बड़े तो हो गए हो की अपना बेग जमा सको , अपनी यूनिफार्म साफ सुथरी रख सको अपने जूते पोलिश कर सको।  आपके मम्मी पापा बिज़ी रहते हैं तो कम से कम आप खुद कह सकते हो की मेरी ड्रेस धो दो, प्रेस कर दो ,जूते आप खुद रात में पोलिश कर सकते हो है न ?" 
वह एकटक मुझे देखता रहा। आँखें अभी भी भरी हुईं थीं शायद घर में जो उपेक्षा उसे मिल रही थी वह उस पर हावी थी।  
मैंने फिर समझाया " देखो बेटा बहुत सारे पेरेंट्स नौकरी करते हैं सुबह जल्दी घर से जाते हैं उनके बच्चे भी अपना काम खुद करते हैं , है ना ? फिर खुद काम करना तो अच्छी आदत है आप अपना खुद का ध्यान तो रख ही सकते हो।  आप रोज़ रोज़ सज़ा पाते हो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। प्रोमिस करो अब से रोज़ अपना बेग जमाओगे सभी कॉपी किताबें लाओगे और साफ सुथरे स्मार्ट बन कर आओगे। " 
इस बात से अपनी उपेक्षा का भाव कुछ कम हुआ , उसने जाना की बहुत सारे बच्चे अपना काम करते हैं  वह भी कर सकता है। उसने धीरे से सिर हिलाया और अपनी जगह पर बैठ गया।  
दूसरे दिन मैंने देखा उसने साफ सुथरी इस्त्री की हुई ड्रेस पहनी थी जूते पोलिश थे बेग ठीक से जमाया हुआ था , उसके चेहरे और आँखों में उलझन नहीं थी और पहली बार सुबह सुबह खड़ा नहीं होने से वह सिर उठा कर गर्वीली मुद्रा में बैठा हुआ था.  

* * *