टीचिंग जॉब में बच्चों के साथ नित नए अनुभव होते हैं जो न सिर्फ आपको रोमांचित करते हैं बल्कि कई नई नई बाते सिखाते हैं और एकरसता नहीं होने देते। हर दिन नए अनुभव हासिल करने के लिए एक मौका होता है और इनका सबसे रोमांचक हिस्सा होता है पालक शिक्षक मीटिंग जिसे हम पी टी एम कहते है। हालांकि कई बार पेरेंट्स के कड़े तेवरों का सामना भी करना पड़ता है तो कई पेरेंट्स इतने ध्यान से बात सुनते और समझते हैं कि अपनी समझदारी पर खुद को ही शाबाशी देने का मन करता है( बाकि तो ये थैंक लेस जॉब है )। हाँ ये मीटिंग बड़ी थकाऊ और कभी कभी उबाऊ भी होती हैं जब आपको एक ही बात बार बार कई घंटे तक दोहरानी होती है लेकिन ये भी सच है की अंत में कई खट्टे मीठे अनुभवों को लेकर उठते हैं।
कई बार पिछली बार की पी टी एम का रिज़ल्ट भी मिलता है तो कई बार पेरेंट्स के नज़रिये में आया बदलाव भी नज़र आता है। इस बार की पी टी एम के कुछ अनुभव आपसे साझा करना चाहती हूँ।
और मन लग गया
आज एक बच्ची अपनी मम्मी के साथ आई। पिछली बार के पी टी एम में जब वह आई थी तब उसकी मम्मी थोड़ा चिंतित थी। कहने लगीं इसे मैथ्स में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है करती है लेकिन बिलकुल बेमन से। मैथ्स तो बेसिक सब्जेक्ट है इसमें तो इंटरेस्ट होना ही चाहिए। हालांकि वह लड़की ठीक ठाक कर रही थी। हाँ मैथ्स में उसका मन कम लगता था ये तो मैंने भी नोटिस किया था। मैंने उसे समझाया "जब तुम बिना इंटरेस्ट के इतना कर लेती हो तो अगर सोच लो कि मन लगा कर पढ़ोगी तो कितना अच्छा कर सकती हो, फिर इंटरेस्ट तो लेते लेते ही आएगा ना जैसे जब पहली बार मेगी खाते है तो सबको उसका स्वाद अच्छा नहीं लगता लेकिन खाते खाते पसंद आने लगता है ना ? इसलिए थोड़ा और मन लगाओ। "
क्लास में उसमे आये परिवर्तन को मैंने नोटिस किया था वह खुद से सवाल हल करने लगी थी।समझ ना आने पर पूछ लेती थी।
आज जब वह आई तो बहुत खुश थी। इस बार वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई थी। मैंने उससे पूछा "खुश हो उसने मुस्कुरा कर सिर हिलाया। फिर मेरी टॉफ़ी कहाँ है ?"
वह मुस्कुरा दी।
"अच्छा मम्मी ने तुम्हे टॉफ़ी दी ?"
"नहीं "
"अरे ये तो गलत बात है न तुम्हे टॉफ़ी दी न मुझे। अब से हम मैथ्स नहीं पढ़ेंगे। ठीक है ना। "
" उसने इंकार में सिर हिलाया। "
" मैडम अब तो इसे मैथ्स बहुत अच्छा लगता है जब भी पढने को कहो बस मैथ्स ही करती है। " एक संतुष्टि उस की मम्मी की आँखों से होंठों तक पसरी थी।
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मिस्टर परफेक्टनिस्ट
एक बच्चा अपने पापा के साथ आया था उसके मैथ्स में 25 में से 24 मार्क्स आये थे। वह खुश था मैं भी खुश थी। मैंने उसे शाबाशी दी उसके पापा तब तक चुप रहे फिर अचानक बोल पड़े "मैडम मैं सोचता हूँ कि अगर सिक्स्थ क्लास के इतने सिम्पल मैथ्स में ये 24 मार्क्स पर संतुष्ट हो जाता है तो ये एक तरह से इसकी ग्रोथ रुकने जैसा है। मेरा मानना है कि अगर ये परफेक्ट हो सकता है तो इसे उसके लिए कोशिश करना चाहिए। आपसे भी मैं इतना सपोर्ट चाहूँगा कि आप उसे फुल मार्क्स लेने के लिए प्रोत्साहित करें।"
मैंने इस बीच दो तीन बार बच्चे की ओर देखा उसके चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे , उसकी ख़ुशी काफूर हो चुकी थी वह अपमानित सा महसूस कर रहा था और मैं समझ नहीं पा रही थी क्या कहूँ और उसके पापा थे की अपनी रौ में बोलते जा रहे थे। मन तो हो रहा था कि उनसे कहूँ की सिक्स्थ का जो मैथ्स आपके लिए सरल है उस १० साल के बच्चे के लिए तो चाईनीज़ सीखने जितना ही कठिन है। एक नंबर कम आना मतलब किसी कांसेप्ट का समझ ना आना नहीं है बल्कि ये तो साधारण गलतियों की वजह से है। एक मन हो रहा था कि पूछू जब आप सिक्स्थ में थे आपको कितने नंबर आये थे। अगर वे आपको याद नहीं हैं तो इसके ये नंबर कौन और कितने दिन याद रखेगा। या कि उनसे कहूँ कि अभी से परफेक्टनिस्ट होने का जो प्रेशर आप डाल रहे है इसकी वजह से जब उसे सच में परफेक्ट होना चाहिए तब तक वह कहीं विषय में अपनी रूचि ही न खो दे। लेकिन एक टीचर के रूप में बच्चों और पेरेंट्स के सामने शिष्टाचार की कई दीवारे होती हैं इसलिए खुद को रोक लिया।
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तो क्यों न कुछ और
एक लड़की अपनी मम्मी के साथ आई वह पढने में बहुत अच्छी है उसकी मम्मी का भी कहना था कि उसे मैथ्स में कोई दिक्कत नहीं है वह जो भी करती है खुद ही करती है। बाकि सभी सब्जेक्ट्स में भी वह बहुत अच्छी है। देखा जाये तो बात चीत के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था कि अचानक मम्मी जी ने पूछा " मैडम आप कोई और बुक बता दीजिये जिससे इसे कुछ एक्स्ट्रा प्रैक्टिस करने को मिले या तो कोई ऐसी साइट बता दीजिये जहाँ से ये एक्स्ट्रा प्रोब्लेम्स सॉल्व कर सके। अभी तो इसके पास बहुत सारा समय होता है जिसे ये उपयोग कर सकती है। "
बिटिया ने इस बात पर बुरा सा मुंह बनाया तो मम्मी समझाने लगीं "बेटा जितना एक्स्ट्रा मेहनत करोगी उससे तुम्हारी स्पीड अच्छी होगी। आगे किसी कॉम्पिटिशन में ये स्पीड ही आपके काम आएगी। और जितना करना हो करना, नहीं तो कोई बात ही नहीं है।"
हालांकि मैं और वह दोनों समझ रहे थे कि एक और बुक आने के बाद उसे करना थोपने की हद तक अनिवार्य हो जायेगा। खैर मैंने उन्हें एक दो ऑनलाइन साइट्स बताई और कहा मैं और पता कर के बताउंगी अभी अचानक तो मुझे याद नहीं आ रहा है। इसके सिवाय कोई और चारा ही नहीं था।
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हमारे ज़माने में
ऐसे ही एक बच्चे के पापा आये जिन्हे ये भी नहीं पता था कि साल में कितने एक्साम्स होते हैं उनमे से कितने एक्साम्स उसने नहीं दिए हैं। खैर बच्चा पढने में ठीक है अच्छा स्टूडेंट है इसलिए ऐसी कोई विशेष बात बताने के लिए नहीं थी उन्हें सिर्फ ये बताया कि अब फाइनल एक्साम्स के लिए रिवीजन शुरू करे।
बस वे शुरू हो गए कहने लगे "एक एक सवाल को चार चार बार करो घोंट डालो हम तो पूरी पूरी कॉपियाँ भर देते थे इतनी प्रैक्टिस करते थे रोज़ दो घंटे मैथ्स करते ही थे। "
चूंकि बातचीत बड़े सौहाद्र पूर्ण अंदाज़ में चल रही थी इसलिए मैंने हँसते हुए कहा "सर आपके समय में टी वी नहीं था , इंटरनेट कम्प्यूटर गेम्स नहीं थे , इतने सारे असाइनमेंट नहीं दिए जाते थे ,इतनी सारी को करिकुलर एक्टिविटीज नहीं थीं इतनी स्पोर्ट क्लास हॉबी क्लास नहीं होती थीं। इनके पास ये सब है और इनका दिन वही चौबीस घंटों का ही है। "
एक क्षण को तो वे चुप हुए फिर हंसने लगे "हाँ मैडम ये तो है। मेरा बेटा बास्केट बॉल का खिलाडी है और हम लोग इतने व्यस्त है कि इसे बिलकुल समय नहीं दे पाते ये खुद ही सब करता है। "
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पेरेंट्स के डर
एक लड़की अपनी मम्मी के साथ आई वह लगातार तीन एक्साम्स में कुछ अच्छा रिजल्ट नहीं ला पा रही है। हालाँकि उस पर क्लास में भी ध्यान दिया है वह समझती है खुद करती भी है लेकिन घबरा जाती है प्रश्नों को समझ नहीं पाती और सब गड़बड़ हो जाता है। मैंने उसे प्रैक्टिस करने का तरीका बताया उसे हिम्मत बंधाई कि वह घबराया न करे उसे आता सब है बस घबराहट में वह प्रश्न समझ नहीं पाती ।
मेरी बात पूरी हुई भी नहीं थी कि उसकी मम्मी अचानक बोल पड़ीं " मैडम अगर ये नहीं कर पाई तो री एग्जाम तो होती है ना ? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये फेल हो गई तो इसे फिर से इसी क्लास में रिपीट करना पड़ेगा। ?वैसे मैडम आंठवी तक तो फेल नहीं करते ना। ?
मैंने बच्ची की तरफ देखा उसका चेहरा फक पड़ गया "मैंने कहा अरे इसकी नौबत ही नहीं आएगी वह समझदार है सिर्फ घबरा जाती है।अब ठीक से प्रैक्टिस करेगी तो बढ़िया कर लेगी आप चिंता ना करें।"
लेकिन मम्मी के डर अपनी जगह थे ,"मैडम कभी फेल हो गई तो स्कूल से निकाल तो नहीं देंगे ना।?"
मैं मम्मी को कैसे चुप करवाऊँ जितना मैं उस बच्ची का हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रही थी उतना ही उसकी मम्मी अपनी घबराहट में उसे हतोत्साहित करने में लगी थीं।
आखिर मैंने उससे कहा "बेटा जरा बाहर कॉरिडोर में जाकर देखो तो अपनी क्लास के और कितने बच्चे और उनके पेरेंट्स आये हैं?" जैसे ही वह दरवाजे तक गई मैंने दबे स्वर में उसकी मम्मी से कहा "देखिये वह पहले ही घबराई हुई है और री एग्जाम की बात करके आप उसे हतोत्साहित न करें। इस समय उसे खुद पर विश्वास दिलाना है। री एग्जाम होती है लेकिन हमें कोशिश ये करनी है की उसकी नौबत ही ना आये। " मम्मी को शायद बात समझ आ गई वो एकदम चुप हो गई।
तब तक उसने आकर कहा मैडम कॉरिडोर में और कोई बच्चे नहीं हैं। "
"ओ के बेटा अब ठीक से पढ़ना तुम कर सकती हो और कोई भी प्रॉब्लम आये मुझसे पूछना ठीक है ?"
"जी मैडम"
कई बार लगता है की सी बी एस ई टीचर्स के लिए इतनी वर्कशॉप का आयोजन करता है उसे पेरेंट्स के लिए भी साल में कम से कम दो वर्कशॉप आयोजित करना, जरूरी करना चाहिए जिससे सही पेरेंटिंग की दिशा तय की जा सके।
क्रमशः